30 अक्तूबर 2012

SP/2/1/7 इक मुट्ठी भर चाँदनी, इक थाली भर धूप - अश्विनी शर्मा

सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन

लास्ट शुक्रवार से कल तक भाग-दौड़ जारी रही। नेट के विभिन्न प्लेट्फ़ोर्म्स पर तमाम मित्रों ने जन्मदिन की शुभकामनायें भेजीं, सभी का हृदय से आभार। एक दूसरे से भेंट-मुलाक़ात न होने के बावजूद भी हम लोग समान रुचि / विषय होने के कारण कितने क़रीब आ जाते हैं। किसी ज़माने में जो लगाव पुस्तकों को पढ़ कर उन पुस्तकों के लेखकों / कवियों / शायरों से होता था अब कमोबेश वही वर्च्युयल वर्ल्ड में भी होने लगा है। दिल्ली प्रवास के दौरान तमाम मित्रों से मिल कर बहुत अच्छा लगा। आदरणीय तुफ़ैल जी ने अपने नोयडा निवास पर मेरे जन्मदिन 27 अक्तूबर के दिन महफ़िल-ए-शायरी का आयोजन कर के मेरे लिए इस दिन को यादगार दिन बना दिया। बहुत-बहुत आभार बड़े भाई। उस के बाद मथुरा और फिर बेक टु पेवेलियन :)

आइये आज की पोस्ट में पढ़ते हैं भाई श्री अश्विनी शर्मा जी के दोहे। इस बार दोहे बिना सम्पादन के पेश किए जा रहे हैं।

अश्विनी शर्मा

ठेस / टीस
धरती हा-हा कर रही ,जीना हुआ मुहाल
खड़ा सामने आ हुआ,फिर से वही अकाल

उम्मीद
इक मुट्ठी भर चाँदनी, इक थाली भर धूप
साँसों भर ख़ुशबू मिले, आँखों भर हो रूप

सौंदर्य
सूरज ठिठका मोड़ पर, धूप गयी परदेस
गुपचुप धरती ने दिया, कुहरे को संदेस

आश्चर्य
रिश्ते मन हुलसा रहे, रिश्ते खींचें टाँग
रिश्ते समझ न आ रहे, मौसम ने पी भाँग

हास्य / व्यंग्य
वेलेंटाइन को मिले, सब से ज्यादा वोट
आरचीज की गेलरी ,छाप रही है नोट

वक्रोक्ति / विरोधाभास
बड़ी ग़ज़ब उस की अकड़, ख़ुद को कहे हक़ीर
कहता, ख़ुद को, चाहता, सब को, दिखें, फ़क़ीर
[हक़ीर - तुच्छ]

सीख
सब कुछ मिलता मोल से, साँस मिले बिन मोल
मोल मिला बिन मोल का, बिना मोल अनमोल

छंद हों या ग़ज़ल, अश्विनी भाई अपने अलग रंग और अंदाज़ में पेश होते हैं जो कि कई एक बार चौंका भी देता है। शब्दों की बुनावट ख़ासियत है कई दोहों की। बात में से बात निकालने का प्रयास सहसा ही आकर्षित करता है। कुछ दोहे सोच को दावत भी दे रहे हैं। दोहे हाज़िर हैं आप के दरबार में। दोहाकार का उत्साह वर्धन करते हुये अपनी राय रखें।

संभवत: सभी के दोहों पर मंच अपनी राय उन तक पहुँचा चुका है, बाकी को अब तक की पोस्ट्स से इल्म हो गया होगा। तो फटाफट अपने दोहे भेजने की कृपा करें। दीवाली से पहले इस आयोजन के समापन के बाद 'होली' की तरह इस बार 'दीवाली' स्पेशल पोस्ट लाने का विचार है। अभी से सभी साथियों से विनम्र निवेदन किया जाता है कि 5 नवम्बर से पहले दिवाली स्पेशल पोस्ट के लिये अपने तथा अपने परिचितों [हमारी तरफ़ से विनम्र निवेदन करते हुये] के दीवाली को केंद्र में रख कर लिखे गये दोहे भेजने की कृपा करें। कृपया मेल में दिवाली के दोहे शीर्षक अवश्य डाल दें, ताकि उन दोहों को अलग फोल्डर में शिफ्ट कर के सेव किया जा सके।

दिवाली के दोहों के संबंध में नोट करें - कम से कम एक दोहा और अधिक से अधिक तीन दोहे - मंच की इच्छा है कि प्रत्येक रचनाधर्मी का सर्वोत्तम प्रकाशित हो। नए साथियों से निवेदन किया जाता है कि यदि एक दोहा भेजना हो तो कम से कम तीन दोहे लिखें और फिर उन तीन में से किसी एक को स्वयं छाँट कर भेजें। दिवाली पोस्ट के सम्पादन को कम समय मिलेगा इसलिए आप सभी से अपनी-अपनी तरफ़ से सर्वश्रेष्ठ का प्रयास करने हेतु पुन: निवेदन।

!जय माँ शारदे!

17 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर रचनाएं ..
    अश्विनी शर्मा जी से मिलवाने का आभार !!

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  2. छा गए भ्राता, इतने अच्छे दोहे लिखे हैं आपने कि तबियत खुश हो गयी. अब तो मेरी भागीदारी होनी ही पड़ेगी नही तो नवीन भाई दौड़ा लेंगे.

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  3. आदरणीय तिवारी जी
    आप के सरोकारों के लिए मंच सहृदय आभारी है
    आप से एक छोटा सा निवेदन है, आशा है आप इसे अन्यथा न लेंगे

    दिवाली सामने होने की वजह से हमने अब तक आ चुके दोहों को ही प्रकाशित करने का निर्णय लिया है

    तथा जो साथी दोहे न भेज पाये हों, वो अब दिवाली पोस्ट के लिए दोहे भेजें

    आशा है हमारे सभी साथी हमारी भावनाओं को सकारात्मक रूप से समझने का यत्न करेंगे

    आभार

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  4. वाह , बहुत सुंदर दोहे .... अश्विन जी से मिलवाने के लिए आभार

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  5. उम्मीद
    इक मुट्ठी भर चाँदनी, इक थाली भर धूप
    साँसों भर ख़ुशबू मिले, आँखों भर हो रूप

    सौंदर्य
    सूरज ठिठका मोड़ पर, धूप गयी परदेस
    गुपचुप धरती ने दिया, कुहरे को संदेस


    बहुत बढ़िया दोहे

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  6. इक मुट्ठी भरी चाँदनी इक झोली भर धुप |
    साँस भरी सुगंध संग आँखें भर रही रूप ||

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  7. सूरज ठिठका मोड़ पर बदल बदल कर भेस |

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  8. बहुत ही सार्थक दोहे...सभी अच्छे लगे|
    अश्विनी जी को बधाई!

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  9. बहुत खूबसूरत दोहे हैं अश्विनी जी के। उन्हें हार्दिक बधाई इन दोहों के लिए। उम्मीद और सौंदर्य के दोहों का कोई सानी नहीं। बहुत बहुत बधाई अश्विनी जी को।

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  10. इक मुट्ठी भर चाँदनी, इक थाली भर धूप,
    साँसों भर ख़ुशबू मिले, आँखों भर हो रूप।

    सभी दोहों का काव्यगत सौंदर्य अप्रतिम है।

    अश्विन के दोहे अतुल, अद्भुत सृजन अनूप,
    गागर में सागर भरा, छंद सुमन सद्रूप।

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  11. बहुत ही सुंदर सटीक एवँ सार्थक दोहे हैं हर विषय पर ! अश्विन जी को बहुत-बहुत बधाई एवँ शुभकामनायें !

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  12. सचमुच सभी दोहे अपने आप मैं बहुत बढ़िया है किन्तु सौंदर्य और उम्मीद के दोहों का क्या कहना
    अतएव अश्विनजी को बहुत बहुत बधाई.

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  13. ---दोहे तो श्रेष्ठ व सटीक हैं ...परन्तु भाव उतने सटीक नहीं हैं---- यथा...

    ----ठेस तो ठीक है समष्टिगत ठेस है....
    ---उम्मीद की जगह इच्छा है....
    ---सौंदर्य में कौन सा सौंदर्य है मैं समझ नहीं पा रहा हूँ...अगर सूरज मोड़ पर ठिठक गया तो धूप परदेश कैसे चली गयी.....
    --- समझ में न आना कौन सा आश्चर्य होता है, रिश्तों के साथ ये मौसम कहाँ से आगया....
    ----हाँ .व्यंग्य सुन्दर है .....
    -- वक्रोक्ति की अजब-गज़ब अकड है ....
    ----सांस बिना मोल मिलती है इसमें कौन सी सीख है...

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  14. अश्विनी जी के दोहे भी पढ़े और श्याम जी आलोचनात्मक टिप्पणी भी। दोनों ही एक-दूसरे के लिए बने हैं। दोहों की इस शृंखला से काफी कुछ सीखने को मिल रहा है कि किस तरह के दोहे लिखे जाएँ और किस तरह के नहीं। कुछ भी लिखने से पहले श्याम जी जैसे प्रबुद्ध पाठक की उपस्थिति अनायास याद हो आती है। एक दृष्टि से यह बहुत अच्छा भी है। यहाँ रचना के साथ उचित न्याय करने वाले हैं।

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  15. डॉ श्याम गुप्त साहब आभारी हूँ आप ने दोहों को समय दिया
    आदरणीय शब्द कोष में उम्मीद का अर्थ आशा आस इच्छा ख्वाहिश उत्कंठा आदि लिखे हें ....आप इच्छा मान ले
    प्रकृति के रूपों में अगर सौंदर्य नहीं है तो कहाँ होता है ये तो मुझे भी नहीं पता आदरणीय
    आदरणीय मौसम ने भांग पी इसलिए रिश्तों पर आये असर को आश्चर्यगत भाव से प्रकट किया गया है
    शायद मैं अपना भाव आप तक पहुंचा नहीं पाया

    सांस बिना मोल मिलती है इस में सीख नहीं है मान्यवर सही कहा आप ने
    सीख अनमोल को मूल्यहीन तथा मूल्यहीन को मूल्यवान मानने की है
    अत्यंत आभारी हूँ आप की मूल्यवान टिपण्णी के लिये

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