27 अप्रैल 2011

गरमी में चोखे लगें, जल-जलधर-जलजात

गरमी में चोखे लगें, जल-जलधर-जलजात|
सूती कपड़ा झिरझिरे, तन-मन ताप नसात||
तन-मन ताप नसात, रात छत्तन पे सौनों|
भरी दुपैरी ठण्डक मढा कौ कौनों|
सरबत, लस्सी, छाछ, सिकंजी, कन्द स-धर्मी|
ककड़ी औ खरबूज मिटात उदर की गरमी|1|

काया कों चंगी रखें, बैठक- डंड पचास|
संध्या वंदन और जप, मन में भरें हुलास||
मन में भरें हुलास, पास फटके न बिमारी|
तातौ खाय पटे में सौनों नीति हमारी|
टेंटी, अदरक, लोंग, पुदीना, सौंफ झलंगी|
इनकौ इस्तेमाल तबीयत राखै चंगी|2|

आज तलक है मोहि वा, भोजन सों अनुराग|
फुलका मिस्से चून के, करकल्ले कौ साग||
करकल्ले कौ साग, भाज खेतन में जानों|
तोर-तोर गाजर, मूरी बेरन कों खानों|
मन में बैठे राम कहें सुन री सुधि सीते|
बचपन बारे ठाठ रईसी के दिन बीते|3|

11 टिप्‍पणियां:

  1. शेखर चतुर्वेदीबुध अप्रैल 27, 11:41:00 am 2011

    वाह! भाई साब !! बचपन की याद आय गयी ! मन भर गयो ! अति सुन्दर

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  2. लाजवाब कुन्डलियाँ हैं। मुझ्गे ही समय नही मिला सीखने का। शुभकामनायें।

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  3. ब्रजभाषा की तीनों कुण्डलियाँ बहुत प्यारी लगीं |

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  4. नीक लगीं तीनों ही कुडलियां.

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  5. कुण्डलियाँ ब्रज बोल की लेखक मिले नवीन
    गर्मी पे ठंडक परी, हमहूँ कोशिश कीन
    पर सफल न हुए...

    नवीन भाई, आप अपनी अलग पहचान के साथ नित्य नए सोपान पर कदम रख रहे हैं. मेरी भविष्य-वाणी सच होगी, इसका मुझे पूर्ण विशवास है. बधाई.....

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  6. बहुत सुन्दर कुण्डलियाँ..वास्तव में इनको पढ़ कर ही गर्मी दूर हो गयी..बधाई!

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  7. बहुत सुंदर कुंडलियाँ हैं नवीन भाई, बधाई स्वीकार कीजिए।

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  8. bhai aaj ke samay me aap braj bhasha ki kundaliyan likh rahe hain, yah badi baat hai. aapko badhaai.

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