कोई बदलाव की
सूरत नहीं थी
बुतों के पास
भी फ़ुर्सत नहीं थी
अब उनका हक़ है
सारे आसमाँ पर
कभी जिनके
सरों पर छत नहीं थी
वफ़ा, चाहत, मुरव्वत सब थे मुझमें
बस इतनी बात
थी दौलत नहीं थी
फ़क़त प्याले ही
प्याले क़ीमती थे
शराबों की कोई
क़ीमत नहीं थी
मैं अब तक ख़ुद
से ही बेहद ख़फ़ा हूँ
मुझे तुमसे
कभी नफ़रत नहीं थी
गये हैं पार
हम भी आसमाँ के
वहाँ लेकिन
कोई जन्नत नहीं थी
वहाँ झुकना
पड़ा फिर आसमाँ को
ज़मीं को उठने
की आदत नहीं थी
घरों में
ज़ीनतें बिखरी थीं हर सू
मकानों में
कोई औरत नहीं थी
सचिन अग्रवाल
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