बुझे हैं ऐसे कि हो कर भी नईं हुए रौशन - नवीन

बुझे हैं ऐसे कि हो कर भी नईं हुए रौशन
न जाने किस के हुनर से चराग़ थे रौशन
जो उस का काम है उस ने वही किया साहब
बुझे हुओं को जला कर बुझा-दिये……. रौशन
शबे-विसाल तो आँखों पे ख़्वाब हावी थे
शबे-फ़िराक़ भी दीदे न हो सके रौशन
किसी के दिल में जो सपने थे, इक इशारे पर
हमारी पलकों से झर-झर के हो गये रौशन
दुआएँ ऐसे ही दी जाती हैं मुहब्बत में
उदासियों का ठिकाना सदा रहे रौशन
हम उस असर के बशर हैं जिसे सितमगर ने
इनायतों में नवाज़े अनासिरे-रौशन
कुछ ऐसे झूल रहे हो ‘नवीन’ तुम जैसे
तुम्हारे शानों पे रक्खे हों क़ाफ़िये रौशन
नवीन सी. चतुर्वेदी

बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ
मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
1212 1122 1212 22




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