चौपई
छन्द – अशोक कुमार रक्ताले
छिड़ी हुई
शब्दों की जंग
दिखा रहे
नेता जी रंग
वैचारिकता
नंगधडंग
सुनकर हैरत
जन-जन दंग
जाति धर्म
के पुते सियार
इनपर कहना
है बेकार
बात-बात पर
दिल पर वार
जन मानस पर
अत्याचार
पांच वर्ष
में एक चुनाव
छोड़े मन पर
कई प्रभाव
महँगाई भी
देती घाव
डुबो रही है
सबकी नाव
नारी दोहन
अत्याचार
मिला नहीं
अबतक उपचार
सरकारें
करती उपकार
निर्धन
फिरभी हैं बीमार
तीर तराजू औ
तलवार
किसे कहें
अब जिम्मेदार
चढ़ा देश को
अजब बुखार
हर-हर घर-घर
इक सरकार
फूल
पत्तियाँ तीर-कमान
चौसर पर हैं
कई निशान
मतदाता सारे
हैरान
किसे करें अपना मतदान
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