तख्ते-शाही ! तेरी औक़ात बताते हुए लोग
देख ! फिर जम्अ हुए
खाक उड़ाते हुए लोग
तोड़ डालेंगे सियासत
की खुदाई का भरम
वज्द में आते हुए , नाचते-गाते हुए लोग
कुछ न कुछ सूरते-हालात बदल डालेंगे
एक आवाज़ में आवाज़ मिलाते हुए लोग
कोई तस्वीर किसी रोज़ बना ही लेंगे
रोज़ पानी पे नये अक्स बनाते हुए लोग
कितनी हैरत से तका करते हैं चेहरे अपने
आईना-खाने में जाते हुए, आते हुए लोग
काश ! ताबीर की राहों से न भटकें आलम
बुझती आँखों में नये ख़्वाब जगाते हुए
लोग
बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन
2122 1122 1122 22
Bilkul sach
ReplyDeleteकोई तस्वीर किसी रोज़ बना ही लेंगे
ReplyDeleteरोज़ पानी पे नये अक्स बनाते हुए लोग
यह सपना कितना सच होगा नहीं मालूम –लेकिन क्या विश्वास है !!!
क्या तुझको पता क्या तुझको ख़बर , दिन रात ख्यालों में अपने
ऐ काकुले गेती हम तुझको किस तरह सँवारा करते है –जज़्बी
शायर इस दुनिया को कितना खूबसूरत देखना चाहता है सिर्फ वही जान सकता है जिसके पास वैसी ही हस्सास तबीयत और वैसा ही कोमल ह्रदय हो !! आलम भाई साहब !!! किसी दिन ये दुनिया वैसी ही बन जायेगी जैसा हम लोग चाहते हैं –क्योंकि इसी उमीद पे ये दुनिया काइम है --- मयंक