कविता जीवन सत्व है, कविता है रसधार ।
अलंकार,रस,छंद
में, भाव खड़े साकार ।।
भाव खड़े साकार, कल्पना
जाग्रत होती ।
कर देते धनवान, शब्द
के उत्तम मोती ।
'ठकुरेला' कविराय, हरे
तम जैसे सविता ।
मेटें सब अज्ञान, ज्ञान-सागर
सी कविता ।।
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कठपुतली सी जिन्दगी, डोर
प्रकृति के हाथ ।
जाने कैसी गति रहे, जाने
किसका साथ ।।
जाने किसका साथ, थिरकना, हँसना, गाना
।
कभी गमों का दौर, अचानक
सुख आ जाना ।
'ठकुरेला' कविराय, प्रेम
से बाँधे सुतली ।
हिलमिल सबके संग, बिताये
दिन कठपुतली ।।
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जीवन सबसे श्रेष्ठ है, उससे
बढ़कर देश ।
जो अर्पित हो देश पर, जीवन
वही विशेष ।।
जीवन वही विशेष, अमरता
वह पा जाता ।
यह संसार सदैव, उसी
का गौरव गाता ।
'ठकुरेला' कविराय, देशहित
जिनका तन-मन ।
वंदनीय वे लोग , धन्य
है उनका जीवन ।।