त्रिलोक सिंह ठकुरेला के कुण्डलिया छन्द

 


कविता जीवन सत्व हैकविता है रसधार ।

अलंकार,रस,छंद में, भाव खड़े साकार ।।

भाव खड़े साकार, कल्पना जाग्रत  होती ।

कर देते धनवान, शब्द के उत्तम  मोती । 

'ठकुरेला' कविराय, हरे तम जैसे सविता ।

ग़ज़ल - नहीं ऐसा नहीं लम्हे फ़क़त ग़मगीन आये हैं - देवमणि पाण्डेय

 


नहीं ऐसा नहीं लम्हे फ़क़त ग़मगीन आये हैं

मेरे हिस्से में ख़ुशियों के भी पल दो तीन आये हैं

नज़्म - मेरे पापा – अलका मिश्रा

  

वो मेरे मसीहा हैं वही मेरे ख़ुदा हैं

ये सच है मेरे पापा ज़माने से जुदा हैं

 

बचपन में मुझे बाहों के झूले में झुलाया

हर दर्द मेरा अपने कलेजे से लगाया

कविता - मैं लौटना चाहता हूँ - हृदयेश मयंक


दुखों को पार कर

मैं लौटना चाहता हूँ

जैसे लौट आता है सूरज

रोज़ रोज़ अल सुबह

 

मैं लौटना चाहता हूँ

जैसे लौट आता है चाँद

बुशरा तबस्सुम की क्षणिकाएं


ये सत्य है कि तुमसे प्रेम है

प्रेमरत जिसे निहारती हूँ रोज़ 

उस चाँद का घटना-बढ़ना भी सत्य है

कड़ुआ सच यह भी है कि

पूर्णता में चाँद की

सड़क किनारे खड़े वृक्षों में

जो चमकता है सर्वाधिक

वो एक ठूँठ है

निर्बाध चलती सड़क भी सत्य है

शेष सब झूठ है...