कविता जीवन सत्व है, कविता है रसधार ।
अलंकार,रस,छंद
में, भाव खड़े साकार ।।
भाव खड़े साकार, कल्पना
जाग्रत होती ।
कर देते धनवान, शब्द
के उत्तम मोती ।
'ठकुरेला' कविराय, हरे तम जैसे सविता ।
कविता जीवन सत्व है, कविता है रसधार ।
अलंकार,रस,छंद
में, भाव खड़े साकार ।।
भाव खड़े साकार, कल्पना
जाग्रत होती ।
कर देते धनवान, शब्द
के उत्तम मोती ।
'ठकुरेला' कविराय, हरे तम जैसे सविता ।
वो मेरे मसीहा हैं वही मेरे
ख़ुदा हैं
ये सच है मेरे पापा ज़माने से
जुदा हैं
बचपन में मुझे बाहों के झूले
में झुलाया
हर दर्द मेरा अपने कलेजे से लगाया
दुखों को पार कर
मैं लौटना चाहता हूँ
जैसे लौट आता है सूरज
रोज़ रोज़ अल सुबह
मैं लौटना चाहता हूँ
जैसे लौट आता है चाँद
ये सत्य है कि तुमसे प्रेम है
प्रेमरत जिसे निहारती हूँ
रोज़
उस चाँद का घटना-बढ़ना भी
सत्य है
कड़ुआ सच यह भी है कि
पूर्णता में चाँद की
सड़क किनारे खड़े वृक्षों
में
जो चमकता है सर्वाधिक
वो एक ठूँठ है
निर्बाध चलती सड़क भी सत्य
है
शेष सब झूठ है...