30 अप्रैल 2014

अँगुरीन लों पोर झुकें उझकें मनु खञ्जन मीन के जाले परे - गोविन्द कवि

अँगुरीन लों पोर झुकें उझकें मनु खञ्जन मीन के जाले परे
दिन औधि के कैसें गिनों सजनी अँगुरीन की पोरन छाले परे
कवि गोविन्द का कहियै किहिं सों हमें प्रीत करे के कसाले परे
जिन लालन चाँह करे इतनी उनें देखन के अब लाले परे 

औधि - अवधि 

गोविन्द कवि


दुर्मिल सवैया
कुल चार चरण, आठ सगण प्रति चरण

6 टिप्‍पणियां:

  1. अँगुरीन लों पोर झुकें उझकें मनु खञ्जन मीन के जाले परे
    ११२ १२२ ११२ ११२ ११२ ११२ १२२ २१२
    दिन औधि के कैसें गिनों सजनी अँगुरीन की पोरन छाले परे
    ११२ १ २२ २१२ १२२ ११२ १२२ ११२ २१२
    कवि गोविन्द का कहियै किहिं सों हमें प्रीत करे के कसाले परे
    ११२ २१२ ११२ ११२ १२२ ११२ २१२ २१२
    जिन लालन चाँह करे इतनी उनें देखन के अब लाले परे
    ११२ ११२ ११२ ११२ १२२ ११२ ११२ २१२
    आठ सगण (= ११२ ) प्रति चरण....
    ---- सभी सगण नहीं हैं अतः ...गण पर शुद्ध नहीं है ....

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  2. परन्तु ....सवैया हर प्रकार से सुन्दर बन पडा है ....

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  3. असावधानीवश लिखते समय गणों के सिद्धांत में चूक होना संभव है...
    जो भी हो, सवैया सुंदर है


    साधुवाद !

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  4. सवैया छंद में अक्षर-लोप एक साधारण घटना है, यथा

    मानुष हों तौ वही रसखान ... जो पसु हों तौ बसेरौ करों - रसखान
    देख सुदामा की दीन दशा ...... - नरोत्तम
    को नहिं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारौ - तुलसीदास
    पर कारज देह कों धारें फिरौ - घनानन्द

    लिस्ट बहुत लम्बी है

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    1. अक्षर / मात्रा लोप यानि हर्फ़ गिराना यानि गुरु को लघु की तरह पढ़ना

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  5. बहुत सुंदर सवैया । सवैया के पूरे रस में पगा हुआ ।

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