नवीन जी, बहुत सुन्दर बात आपने कवित्त के माध्यम से व्यक्त किया है ह्रदय को स्पर्श करने वाली और एकदम सच्ची.... बहुत पहले कॉलेज की एक पत्रिका में ऐसी ही एक बात मैंने भी लिखी थी ... करके हम को याद ज़माना अब क्यों रोये जब था तेरे पास, रहे तुम सोये-सोये लेकिन सच तो यह भी है कि आदमी तो सारी जिंदगी खोया रहता है अपने स्वार्थ जंजाल में..वह किसी का आंकलन तो करता ही उसकी अनुपस्थिति में है यह तो ज़माने की चाल है भैया....
आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 26-07-2011 को चर्चामंच http://charchamanch.blogspot.com/ पर मंगलवारीय चर्चा में भी होगी। सूचनार्थ
ReplyDeleteवाह!! क्या खूब!!
ReplyDeletevaah kitni badi baat ek chhand me? bahut khoob.
ReplyDeleteजीते जी पूछें नहीं, चलें निगाहें फेर|
ReplyDeleteआँख मूँदते ही मगर, तारीफों के ढेर||
बहुत अच्छी रचना ,सटीक शब्दो के साथ
अगल बगल करता रहा, जीवन भर उत्पात |
ReplyDeleteमरा पडोसी था भला, मदद किया दिन-रात ||
बहुत-बहुत बधाई नवीन जी ||
bhaut khub....
ReplyDeleteयथार्थ और प्रेरक ... दोनों बातें।
ReplyDeleteव्यक्त कर उद्गार मन के।
ReplyDeleteसच्चाई बयाँ की है ... इस दुनिया से जाने के बाद ही व्यक्ति की अच्छाइयां नज़र आती हैं ..
ReplyDeleteशास्वत सच्चाई को अभिव्यक्त करता कुण्डली छंद...
ReplyDeleteसादर....
Bahut sundar . Aanandit ho gyaa hoon.
ReplyDeleteबहुत सुंदर नवीन भाई, सच्ची बात को बड़े ही शानदार तरीके से कहा है आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए।
ReplyDeletechand me band kiya bahut marmik baat
ReplyDelete@मृत्यु बाद संताप - भला क्या सिद्ध करे जी|
ReplyDeleteप्रेरक
कुंडली के शब्द-संयोजन में एक नवीनता झलक रही है।
ReplyDeleteनायाब कुंडली के लिए बधाई, नवीन जी।
नवीन जी,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बात आपने कवित्त के माध्यम से व्यक्त किया है ह्रदय को स्पर्श करने वाली और एकदम सच्ची....
बहुत पहले कॉलेज की एक पत्रिका में ऐसी ही एक बात मैंने भी लिखी थी ...
करके हम को याद ज़माना अब क्यों रोये
जब था तेरे पास, रहे तुम सोये-सोये
लेकिन सच तो यह भी है कि आदमी तो सारी जिंदगी खोया रहता है अपने स्वार्थ जंजाल में..वह किसी का आंकलन तो करता ही उसकी अनुपस्थिति में है यह तो ज़माने की चाल है भैया....