30 अप्रैल 2014

आमन्त्रण - जितेन्द्र जौहर

ऐ रात की स्याही,
आ...
कि तुझे अपनी लेखनी की
रौशनाई बनाकर
उकेर दूँ कुछ शब्द-चित्र
मुहब्बत के कैनवस पर!

आ...
कि प्रेम की चाँदनी रात
वैधव्य का श्वेताम्बर ओढ़कर
'स्याह सुदर्शन' जीवन का
श्रृंगार करना चाहती है!

आ...
कि हठधर्मी पीड़ा
घुटने मोड़कर बैठ गयी है
एक अलिखित प्रेमपत्र की
इबारत बनने को!

आ...
कि शब्द का 'बैजू'
बाबरा हुआ जाता है-
अपनी मुहब्बत के
निर्मम हश्र से उपजे 
आँसुओं की सौग़ात पर!

आ...
कि इस बेरहम मौसम के कहर से
अनुभूतियाँ कराह उठी हैं...!

आ...
कि धुँधुँआकर
सुलगता अन्तर्मन
अदम्य विकलता को
'शब्द-ब्रह्म' की
शरण देने को आतुर है!

कि प्रेम-देवी की आराधना में थके
आरती के आर्त स्वर
काग़ज़ पर उतरकर
कुछ पल को
विश्राम करना चाहते हैं!

आ...
ऐ रात की स्याही,
, तरल होकर...
कि तुझे अमरत्व का
दान देना है
असह्य वेदना को
अमरता का
वरदान देना है!

- जितेन्द्र 'जौहर'
मोबाइल:  +91 9450320472

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