1 अगस्त 2012

मरमरी बाँहों पे इस ख़ातिर फ़िदा रहता हूँ मैं - नवीन

मरमरी बाँहों पे इस ख़ातिर फ़िदा रहता हूँ मैं
इन के घेरे में गुलाबों सा खिला रहता हूँ मैं

फैलने के बावजूद उभरा हुआ रहता हूँ मैं
नैन-का-जल हूँ सो आँखों में सजा रहता हूँ मैं

तेरे दिल में रहने से मुझको नहीं कोई गुरेज़
गर तू मेरे हक़ में कर दे फ़ैसला – रहता हूँ मैं

देख ले सब कुछ भुला कर आज़ भी हूँ तेरे साथ 
तेरी यादों की सलीबों पर टँगा रहता हूँ मैं

उन पलों में जब सिमट कर चित्र बन जाती है वो
फ्रेम बन कर उस की हर जानिब जड़ा रहता हूँ मैं

उस की हर हसरत बजा है मेरी हर ख़्वाहिश फ़िजूल
ये हवस है या मुहब्बत सोचता रहता हूँ मैं

क्यूँ न मेरे जैसे जुगनू से ख़फ़ा हो माहताब
उस की प्यारी चाँदनी को छेड़ता रहता हूँ


आने वाला वक़्त ही ये तय करेगा दोसतो
मुद्दआ बनता हूँ या फिर मसअला रहता हूँ मैं
:- नवीन सी. चतुर्वेदी

13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब.............

    लाजवाब गज़ल..

    सादर
    अनु

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  3. उन पलों में जब सिमट कर चित्र बन जाती है वो
    फ्रेम बन कर उस की हर जानिब जड़ा रहता हूँ मैं

    अय-हय-हय ! इस शे’र पर मंत्रमुग्ध सा हो गया हूँ, भाईजी. क्षण-विशेष के प्रत्येक आयाम को साकार करती पंक्तियाँ. जीये कोमल क्षणों को पुनः-पुनः जीने को बाध्य करता भाव मानों शब्द बन कर उभर आया है. शब्द-शब्द चित्र उकेर रहा है, भाईजी और.. और बस !
    हृदय की गहराइयों से ढेरम्ढेर बधाइयाँ स्वीकर करें.

    सादर

    --सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)

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  4. बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आया... एक शानदार ग़ज़ल पढने को मिली... सुन्दर...

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  5. यादों की सलीब न कहो यारों,
    लोग प्रेम का खुदा न समझ बैठें,

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  6. तेरे दिल में रहने से मुझको नहीं कोई गुरेज़
    गर तू मेरे हक़ में कर दे फ़ैसला रहता हूँ मैं,,,

    रक्षाबँधन की हार्दिक शुभकामनाए,,,
    RECENT POST ...: रक्षा का बंधन,,,,

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  7. क्या कहने ??
    बहुत ही बेहतरीन गजल...
    :-)

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  8. लाजवाब गजल आदरणीय नवीन भाई जी...
    सादर.

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  9. वाह ...बस एक ही शब्द कहूँगी ...निशब्द कर दिया

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  10. तेरे दिल में रहने से मुझको नहीं कोई गुरेज़
    गर तू मेरे हक़ में कर दे फ़ैसला – रहता हूँ मैं

    अद्भुत.. अद्भुत...

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