
विजया-दशमी की शुभ-कामनाएँ
अत्याचार अनीति कौ, लङ्काधीस प्रतीक|
मनुआ जाहि जराइ कें, करें बिबस्था नीक||
करें बिबस्था नीक, सीख सब सुन लो भाई|
नए दसानन - भ्रिस्टाचार, कुमति, मँहगाई;
छल, बिघटन, बेकारी, छद्म-बिकास, नराधम|
"मिल कें आगें बढ़ें, दाह कौ श्रेय ल़हें हम"|
एक अकेलो है चना! कैसें फोड़े भाड़?
सीधी सी तो बात है, तिल को करौ न ताड़||
तिल को करौ न ताड़, भाड़ में जाय भाड़ भलि|
जिन खुद बनें, बनाएँ न ही हम औरन कों 'बलि'|
खुद की नीअत साफ रखें, आबस्यकता कम|
"चलौ आज या परिवर्तन कौ श्रेय ल़हें हम"|
sundar abhivyakti!
ReplyDeleteaaj ke ravan ki pahchan batati aur sankalpshakti ki baat karti kundaliyon ke liye aabhar!
happy dussehra!
ReplyDeleteregards,
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteसर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोsस्तु ते॥
विजयादशमी के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
काव्यशास्त्र
adbhut bhaisahab ...
ReplyDeleteअनुपमा जी, मनोज जी और सानू भाई बहुत बहुत शुक्रिया|
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 29 -12 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज... जल कर ढहना कहाँ रुका है ?
बहुत बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteवाह ...बहुत बढ़िया कटाक्ष...
ReplyDeleteआज की हलचल में इस रचना की हलचल है...
सादर.
वाह ....बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteacchhi prastuti.
ReplyDeleteमनभावन छंद में वर्तमान परिवेश का सुंदर चित्रण.
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