30 अप्रैल 2014

मैं देश चलाना जानूं रे -अविनाश वाचस्‍पति

अगर देश का प्रधानमन्त्री किसी चाय बनाने वाले को बनाने के लिए चुनोगे तो इतना गड़बड़झाला तो वह करेगा कि चाय माँगने पर वह बकाया राशि की जगह टाफी थमाने की जुर्रत कर बैठेगा। चाय के ढाबे पर जो टाइम पास करने के लिए आया है कि जब तक देश के मुखिया का पद न हथिया लेतब तक चाय का धन्धा करना नहीं छोड़ेगा। चाय बेचने के धन्धे का बखान तो यूँ कर रहा है, मानो एक लम्बा वाला तीर मार लिया हो जो सीधा पड़ोसी देश को पीड़ा दे रहा हो। जिसे ट्राफी चाहिए उसे चाय वाला टाफी थमा देता है। चाहे वह चाय बना बनाकर दूध में खूब सारा पानी मिला कर बेचना चाय धन्धियों का पसन्दीदा शगल रहा है, उसी के बल पर उनका बिजनेस परवान चढ़ा है। वोटरों को सपने गाय या भैंस और उससे मिलने वाले शुद्ध दूध के दिखला रहा है। नजर उसकी वोटर पर टिकी है। वह जानता है कि सावधानी हटते ही दुर्घटना घटती है इसलिए वह पीएम पद पर से अपनी मासूम निगाहें नहीं हटा रहा है। जिस राजनैतिक दल में घुसकर उसने पीएम बनने के सपने देखे हैं उस दल ने उसके चित्रों को लोकप्रियता की ऐसी चरमसीमा पर पहुँचा दिया कि रम का नशा भी उसके सामने फीका है। लगभग सभी अखबारों के उन पन्‍नों पर भी उसके बड़े बड़े फोटू छाप दिए हैं कि वह अब हकीकत पर ठहर नहीं सकता। लगता है कि वह जानता है कि जिस पीएम पद पर आने का उसने जुगाड़ किया है, वहाँ पर पीएम बनने के बाद भी थोक में फोटू छपने के इतने मौके नहीं हैं। फिर तो उसके चित्र कहीं उद्घाटन करते हुए, अध्‍यक्षता करते हुए ही न्‍यूज के साथ ही अन्दरूनी पन्‍नों पर बामुश्किल जगह पाते हैं। भैंस अभी पानी से बाहर है और उसका रायता फैलाने की कोशिशें नाकाम हो रही हैं।

उसकी अन्दरुनी मिलीभगत देश के बड़े बड़े पूँजीपतियों के साथ है, पीएम दिखाई वही देता है पर इसे गाइड पूँजीपति करते हैं। उनके हाथों में खेलकर भी पीएम वही कहलाएगा, जबकि मनमानी पूँजीपतियों की चल  रही होगी। विकास पूँजीपतियों का और विनाश वोटरों का। चौधरियों से सब परिचित हैं।  सरकार ऐसे ही चालेगी, जैसे वह चाहेंगे। जिस प्रकार चाय की दुकान के लिए ठिए का जुगाड़ लगाने के बाद उसे इधर उधर नहीं किया जा सकता उसी प्रकार पीएम बनने के बाद वह तुरन्त अगर प्रेसीडेंट बनना चाहेगा तो नहीं बन पाएगा। पीएम के पद पर जीत के साथ इस प्रकार के हार साथ में मिलते हैं। यह जीत की हार होती है। हार की जीत शीर्षक बनने के लिए फूलों अथवा नोटों के सुगन्धित हार चाहिए जिनमें से जय-विजय पाने की तरङ्गें उठती दिखाई दे रही हों।

अब तरङ्गें तो उठ रही हों चाय बनाने की और चाय बनने के बाद भी टाफी दी जा रही हो, दिल को बच्‍चा बतलाकर चायटाफी दे दी जाए और वह ट्राफी लेने आया हो। तब ऐसे सपनों का भी कोई अर्थ नहीं रह जाता।

इस देश में चाय बेचकर पेट पालने वाले ऐसी गलतियाँ करते हैं और ऐसी गलतियों पर इनसान का नहीं, चाय का धन्धा करने वालों का हक बनता है। वह चाय की दुकान को या तो जूस की दुकान में बदलकर दारू बेचने का व्‍यवसाय शुरू कर लेते हैं और अधिक दुस्‍साहसी हुए तो चाय की दुकान पर ही दारू बेचना शुरू कर देते हैं।

क्‍या अब भी आप चाहेंगे कि किसी चाय बेचने वाले को देश के पीएम पद की कुर्सी सौंप दी जाए। जहाँ तक मेरा मानना है इस देश में पीएम पद के लिए काबिल आज के लेखक या व्‍यंग्‍यकार तो हैं पर चाय वाले नहीं। जबकि व्‍यंग्‍यकार कार पाकर खुश और लेखक किताब छपने पर खुश। उस पर भी पारिश्रमिक मिले तो ठीक और न मिले तो तब भी कोई गिला नहीं। पर वे काले धन पर कलम नहीं चलाते हैं। इसलिए सुर्खियाँ लेखक को आसानी से मिलती नहीं है और जिन्‍हें मिलती हैं वह अङ्ग्रेज़ी के किस्‍सागो  होते हैं। अब फैसला पाठकों पर है कि उनकी इच्‍छा क्‍या है  ? 
अविनाश वाचस्‍पति
9213501292
8750321868 

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