कई रिश्ते बचाना चाहता हूँ - नवीन



कई रिश्ते बचाना चाहता हूँ।
लिहाज़ा दूर जाना चाहता हूँ॥



भटकने का बहाना चाहता हूँ।
तुम्हारे पास आना चाहता हूँ॥



फ़लक़ पर टिमटिमाना चाहता हूँ।
फ़ना हो कर दिखाना चाहता हूँ॥



किसी को लूट कर मैं क्या करूँगा।
मैं तो ख़ुद को लुटाना चाहता हूँ॥

घटाओं की नहीं दरकार मुझ को।
मैं अश्क़ों से नहाना चाहता हूँ॥



नज़र तुम से मिलाऊँ भी तो कैसे।
तुम्हारा ग़म छुपाना चाहता हूँ॥



बहुत मुशकिल है तुम को भूल पाना।
मगर अब भूल जाना चाहता हूँ॥




:- नवीन सी. चतुर्वेदी

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
1222 1222 122

1 टिप्पणी:

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