9 सितंबर 2013

सभी से खुल के मिलता हूँ मेरा जज़्बा ही ऐसा है - नवीन

सभी से खुल के मिलता हूँ मेरा जज़्बा ही ऐसा है
जो दिल में आये कहता हूँ मेरा लहजा ही ऐसा है

मुझे भी दीखता है आईने में टूटता परबत  
मगर कुछ कर नहीं सकता मेरा क़िस्सा ही ऐसा है

मुझे मालूम है वो ही बताने पे तुले हो क्यूँ
पसन्द आता नहीं सबको मेरा चेहरा ही ऐसा है

कोई भी दौर हो ये सर झुका कर ही रहा लेकिन
किशन को चोर कहता है मेरा क़स्बा ही ऐसा है

किसी का दिल दुखाना मुझ को भी अच्छा नहीं लगता
मगर मैं क्या करूँ यारो मेरा धन्धा ही ऐसा है

सुखों का ताज़ ठुकरा कर ग़मों पे नाज़ फरमा कर
दिलों पे राज करता है मेरा कुनबा ही ऐसा है

भला मैंने किसी को भी कभी चिट्ठी लिखी थी क्या
जो आये तुहफ़े लाता है मेरा ओहदा ही ऐसा है

बहरे हजज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन 
1222 1222 1222 1222 

1 टिप्पणी:

  1. कोई भी दौर हो ये सर झुका कर ही रहा लेकिन
    किशन को चोर कहता है मेरा क़स्बा ही ऐसा है ..

    सुभान अल्ला ... इस मस्त बहर में लाजवाब शेर पढ़ रहा हूं ओर आनंद ले रहा हूं ... सभी शेवर एक से बढ़ कर एक ...

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