5 सितंबर 2013

यूँ रब्त कोई उस का मेरे घर से नहीं था - नवीन

मुहतरम बानी मनचन्दा साहब की ज़मीन ‘ऐ दोस्त मैं ख़ामोश किसी डर से नहीं था’ पर एक कोशिश। इटेलिक्स वाले अशआर में सानी मिसरे बानी साहब के हैंउन पर गिरह लगाने की नाक़ाम कोशिश की है

यूँ रब्त कोई उस का मेरे घर से नहीं था
पर पल भी हटा दर्द मेरे दर से नहीं था
रब्त – सम्बन्ध

आवारा कहा जायेगा दुनिया में हरिक सम्त
सँभला जो सफ़ीना किसी लंगर से नहीं था
सम्त – तरफ़ / ओरसफ़ीना – नाव

महफ़ूज रहा है ये मुक़द्दर से ही अब तक
पाला ही पड़ा शीशे का पत्थर से नहीं था
महफ़ूज – सुरक्षित

ख़ुशियाँ थीं हरिक सम्त मगर ग़म ही दिखे बस
बेदार कोई अपने बराबर से नहीं था”
बेदार – परिचित के सन्दर्भ में

क्या अपनी है औक़ात कि इस दुनिया को शिकवा
जंगल से नहीं था कि समन्दर से नहीं था”
शिकवा – शिकायत

: - नवीन सी. चतुर्वेदी

बहरे हजज़ मुसमन अखरब मकफूफ महजूफ
मफ़ऊलु मुफ़ाईलु मुफ़ाईलु फ़ऊलुन

221 1221 1221 122

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