किस तरह कह दें कि माली थक गया है साहिबान।
हमको अन्देशा खिज़ां का हो रहा है साहिबान।।
पेड़-पौधे, फूल-पत्ते, गुंचा-ओ-बुलबुल उदास।
पेड़-पौधे, फूल-पत्ते, गुंचा-ओ-बुलबुल उदास।
ग़मज़दा हैं सब - चमन सबका लुटा है साहिबान।।
फिर न दीवारें उठें, फिर से न टूटे दिल कोई।
फिर न दीवारें उठें, फिर से न टूटे दिल कोई।
कुछ बरस पहले ही अपना घर बँटा है साहिबान।।
खुल गये पन्ने तो सारा भेद ही खुल जायेगा।
खुल गये पन्ने तो सारा भेद ही खुल जायेगा।
अब समझ आया कि सेंसर क्यों लगा है साहिबान।।
ग़म भुलाने के बहाने कुछ न कुछ पीते हैं सब।
हमने भी साहित्य का अमृत पिया है साहिबान।।
ग़म भुलाने के बहाने कुछ न कुछ पीते हैं सब।
हमने भी साहित्य का अमृत पिया है साहिबान।।
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
बहरे रमल मुसमन महजूफ
फाएलातुन फाएलातुन फाएलातुन फाएलुन
2122
2122 2122 212
ग़म भुलाने के बहाने कुछ न कुछ पीते हैं सब
ReplyDeleteहमने तो साहित्य का अमृत पिया है साहिबान
बहुत बढ़िया...साहित्य अमृत तुल्य है.
साहितय से अच्छा अमृत और कौन सा होगा। इसका नशा ही अलग है। बधाई।
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ReplyDeleteबहुत सुंदर गज़ल है|
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना
ReplyDeleteसाहित्य का अमृत चख लिया फिर क्या बचा है ..खूबसूरत गज़ल
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 02-02 -20 12 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज...गम भुलाने के बहाने कुछ न कुछ पीते हैं सब .
खुल गये पन्ने तो सारा भेद ही खुल जायेगा
ReplyDeleteअब समझ आया कि सेंसर क्यों लगा है साहिबान
बहुत खूब सर!
सादर
वाह..
ReplyDeleteबहुत खूब..
सादर.
bahut hi khoobsoorat abhivyakti ...
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही बढिया।
ReplyDeleteखुल गये पन्ने तो सारा भेद ही खुल जायेगा
ReplyDeleteअब समझ आया कि सेंसर क्यों लगा है साहिबान ..
सच बात कहने का निराला अंदाज़ है नवीन जी ... बहुत खूब ... लाजवाब शेर हैं सभी ..
//खुल गये पन्ने तो सारा भेद ही खुल जायेगा
ReplyDeleteअब समझ आया कि सेंसर क्यों लगा है साहिबान
//फिर न दीवारें उठें, फिर से न टूटे दिल कोई
कुछ बरस पहले ही अपना घर बँटा है साहिबान
lajaawaab.. behtareen ghazal.. mazaa aa gaya padhke sir.. :)
kabhi waqt mile to mere blog par bhi aaiyega.. ummeed karta hun apko pasand aayega..
palchhin-aditya.blogspot.in
आपकी सुन्दर अभिव्यक्ति पढकर मन प्रसन्न
ReplyDeleteहो गया है नवीन भाई.
अनुपम लेखन के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईएगा.
'हनुमान लीला भाग-३' पर आपके सुविचार आमंत्रित हैं.
ग़म भुलाने के बहाने कुछ न कुछ पीते हैं सब
ReplyDeleteहमने तो साहित्य का अमृत पिया है साहिबान.
साहित्य का रसास्वादन अमृत से कम नहीं. धन्यबाद इस सुंदर गज़ल का स्वाद चखाने के लिये. बधाई.