सदमात हिज्रे-यार के जब जब मचल गए
आँखों से अपने आप ही आँसू
निकल गए
मुश्किल नहीं था वक़्त की
ज़ुल्फ़ें संवारना
तक़दीर की बिसात के पासे बदल गए
सब हादसात आप की ठोकर से टल
गए
चूमा जो हाथ आप ने शफ़कत से
एक दिन
हम भी किसी फ़क़ीर की सूरत बहल
गए
पहुंचे नहीं क़दम कभी अपने
मक़ाम पर
मंज़िल बदल गयी कभी रस्ते बदल
गए
बहुत ख़ूब
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