19 अगस्त 2016

कबूतर-बिल्ली और कश्मीरी पंडित - अशोक चतुर्वेदी

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पिछले दिनों राज्य विधान सभा में जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के विस्थापित कश्मीरी पंडितों की वापसी और पुनर्वास के संबंध में दिए बयान पर राजनीति गरमा गयी ! महबूबा ने कहा कि कश्मीरी पंडितों को कबूतरों को बिल्ली के आगे फेंकने की तरह घाटी में वापस नहीं बसाया जा सकता अर्थात पंडितों को कश्मीर घाटी में उनके मूल स्थानों में बसाकर उन्हें आतंकवादियों के रहमोकरम पर नहीं छोड़ा जा सकता ! महबूबा का यह बयान कश्मीर के अलगाववादी नेताओं के उन बयानों के उत्तर में था जिसमें हुर्रियत के दोनों धड़ों के नेताओं सहित अन्य सभी अलगाववादी नेता मिलकर कश्मीर घाटी में पंडितों के लिए अलग कालोनी का विरोध करते हुए उन्हें उनके मूल स्थानों  में ही बसाने का कह रहे थे ! 

मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद से कश्मीर के मुख्य धारा के राजनैतिक दलों से लेकर अलगाववादी तक सब महबूबा के पीछे पड़ गये ! मुख्य विपक्षी दल नेशनल कांफ्रेंस, कांग्रेस और माकपा ने मुख्यमंत्री पर बरसते हुए आरोप लगाया कि महबूबा ने अपने बयान से पंडितों को कबूतर बताने की तुलना में कश्मीरी मुसलमानों को बिल्ली बताकर, उन सभी को आतंकवादी बताया है जिनसे पंडितों को खतरा है और इसके लिए उन्हें कश्मीरियों से माफी माँगनी चाहिए, वहीँ हुर्रियत नेता गिलानी ने तो महबूबा का दिमाग ख़राब हो गया बताते हुए कहा कि सत्ता उनके दिमाग को चढ़ गयी है ! 

अपने पर हर कश्मीरी को आतंकवादी बताने के आरोप लगाने वालों का महबूबा ने बहुत सटीक उत्तर से मुंह बंद कर दिया ! विधान सभा में ही इन आरोपों का जबाब देते हुए उन्होंने कहा कि मेने तो  एक उदाहरण दिया था कि कबूतरों को बिल्ली के आगे नहीं छोड़ा जा सकता ! पंडितों को डर आम कश्मीरी मुस्लिम से नहीं बल्कि उन लोगों से है जिन्होंने संग्रामा, बंदहामा जैसे नरसंहार किये या जिन लोगों ने मीरवाइज फारुख और अब्दुल गनी लोन जैसे नेताओं की हत्या की ! आज भी जब घाटी में आतंकवाद है और पार्टियों चाहे वह पीडीपी हो, भाजपा हो ,नेशनल कांफ्रेंस हो या कांग्रेस, सबके नेता या वर्कर अपने मूल निवासों में न रह कर श्रीनगर के होटलों में रहते हैं,सुरक्षा कर्मियों के बिना कहीं जाने की हिम्मत नहीं कर सकते तो कश्मीरी पंडित कैसे अपने मूल निवासों में जा कर रहने की सोच सकते हैं !

महबूबा मुफ्ती की कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के बारे में कही गयी बात,कि उन्हें उनके मूल स्थानों पर रहने के लिए नहीं भेजा जा सकता, बिलकुल सही है पर लगता है अलगाववादी तत्वों की धमकियों के आगे वे भी झुक गयी हैं तभी तो उनकी सरकार ने पंडितों के लिए अलग कालोनी का विचार त्याग दिया और अब उनके अनुसार कश्मीरी पंडितों के लिए कश्मीर में ट्रांजिट कालोनीयां बनेंगी जिनमें ५०% कश्मीरी पंडित तथा शेष ५०% में कश्मीर से गए हुए सिख और मुस्लिम बसेंगे, इन कालोनियों में भी ये सभी विस्थापित अस्थायी रूप से एक ट्रांजिट केंप की तरह रहेंगे और कुछ समय बाद जब हालात ठीक हो जायें या वे खुद को सुरक्षित महसूस करने लगें तब उन सभी को  अपने अपने मूल स्थानों में रहने जाना होगा और जैसा केन्द्रीय गृह मंत्री राज नाथ सिंह के बयान से भी लगता यही है कि केन्द्र सरकार का भी इसी योजना को समर्थन है! पर यह सरकारी योजना कश्मीरी पंडितों की उस मांग के विपरीत है जो उनके संगठन पुनून कश्मीर के १९९१ के मार्गदर्शन प्रस्ताव में थी जिसके अनुसार कश्मीरी पंडित तभी कश्मीर लौटेंगे जब उनके लिए कश्मीर में एक अलग केन्द्र शासित होम लैंड बनाया जायेगा और यही कारण है कि २००१ से लेकर अब तक केन्द्र और जम्मू कश्मीर सरकार की पंडितों के पुनर्वास की विभिन्न योजनायें आने के बाद भी आज तक सिर्फ एक कश्मीरी पंडित परिवार घाटी में लौटा है !

२००८ में मनमोहन सिंह सरकार ने पंडितों की घर वापसी के लिए १६०० करोड़ का पैकेज लाया जिसमे उनकी नौकरी, घर और रोजगार का इंतजाम किया जाना था पर उस पैकेज पर सिर्फ एक परिवार के अलावा कोई पंडित नहीं लौटा ! २०१४ चुनावों में भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में कश्मीरी पंडितों की कश्मीर में ससम्मान वापसी का वायदा था,जम्मू कश्मीर विधान सभा चुनावों के लिए जारी पार्टी के विजन डाकूमेंट में भी जिसे दुहराया गया था पर इसके लिए सिर्फ बातों,बयानों या वायदों के अतिरिक्त कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया ! पिछले माह केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर सरकार से कश्मीरी पंडितों की कालोनीयों के लिए स्थान चिन्हित करने का कहा जिसके लिए राज्य सरकार ने तीन स्थान चिन्हित किये !

     पंडितों की कालोनियों के लिए ये स्थान चुने जाने की खबर से अलगाववादियों की नींद उड़ गयी,उनके सभी गुट इसके विरुद्ध एक हो गए और कश्मीर में हड़तालों और बंद का एक दौर शुरू हो गया ! उनका कहना था पंडितों का स्वागत है लेकिन अलग कालोनियों में नहीं बल्कि वे अपने पुराने घरों में ही वापस आयें ! पहली बात तो यह की पंडितों के पुराने घर अब रहे ही नहीं,उनमे से अधिकतर तो जला दिए गए और बचे खुचे जबरदस्ती खरीद लिए गए फिर पंडित वापस उन घरों में कैसे रहें जहाँ चारों ओर उनके खिलाफ वातावरण हो और उनके स्वागत की बात कोन लोग कह रहे हैं,यासीन मलिक जैसे आतंकवादी जो पंडितों के पलायन के जिम्मेदार हैं,जो पंडितों की कालोनी बनने पर खून बहाने की बात कर रहे हैं और जिन्हें ६२००० पंडित परिवारों के लगभग तीन लाख लोगों के वापस अपने कश्मीर आ जाने से कश्मीर की डेमोग्राफी बदलने का डर सता रहा है !

पर ये अलगाववादी अपने उद्देश्य में सफल हो गए,जम्मू कश्मीर सरकार और केंद्र दोनों के सुर इन धमकियों के आगे बदल गए और कश्मीरी पंडितों की विशुद्ध कालोनियों की जगह अब उनके लिए ट्रांजिट कालोनियों ने ले ली,मतलब पंडितों पर एक प्रयोग कर के देख लिया जाय,अच्छी तरह यह जानते हुए कि कोई भी कश्मीरी पंडित इन ट्रांजिट कालोनियों में जाने के लिए कभी तैयार नहीं होगा!

असल में कश्मीरी पंडितों के साथ उन कबूतरों की तरह ही बरताव किया जा रहा है जिनके घोंसले उजाड़ दिए गए हैं और पिछले २६ वर्षों से जिन्हें फिर बसाने के नाम पर कभी कुछ चुग्गा डाला जाता है और कभी कुछ, पर उन्हें उनके घोंसले देने के लिए गंभीर कोई नहीं !      
               

       

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (21-08-2016) को "कबूतर-बिल्ली और कश्मीरी पंडित" (चर्चा अंक-2441) पर भी होगी।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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