अफ़साने सच्चे हो गए
तो क्या हम झूठे हो गए
एक बड़ा सा था दालान
अब तो कई कमरे हो गये
सबको अलहदा रहना था
देख लो घर मँहगे हो गए
झरने बन गए तेज़ नदी
राहों में गड्ढे हो गए
अज्म था बढ़ते रहने का
पैदल थे - घोड़े हो गए
हर तिल में दिखता है ताड़
हम कितने बौने हो गए
कहाँ रहे तुम इतने साल
आईने शीशे हो गये
बेटे आ गए काँधों तक
कुछ बोझे हल्के हो गए
दिखते नहीं माँ के आँसू
हम सचमुच अंधे हो गए
गिनने बैठे करम उसके
पोरों में छाले हो गए
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
अफ़साने सच्चे हो गए
तो क्या हम झूठे हो गए
एक बड़ा सा था दालान
अब तो कई कमरे हो गये
सबको अलहदा रहना था
देख लो घर मँहगे हो गए
झरने बन गए तेज़ नदी
राहों में गड्ढे हो गए
अज्म था बढ़ते रहने का
पैदल थे - घोड़े हो गए
हर तिल में दिखता है ताड़
हम कितने बौने हो गए
कहाँ रहे तुम इतने साल
आईने शीशे हो गये
बेटे आ गए काँधों तक
कुछ बोझे हल्के हो गए
दिखते नहीं माँ के आँसू
हम सचमुच अंधे हो गए
गिनने बैठे करम उसके
पोरों में छाले हो गए
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
बहुत खूब..
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteलाजवाब
इतने साल कहाँ थे तुम
आईने शीशे हो गये
बहुत बढ़िया.
सादर
अनु
वाह ,,, बहुत खूब लाजबाब प्रस्तुति,,,बधाई नवीन जी,,,
ReplyDeleteRECENT POST...: जिन्दगी,,,,
अच्छी रचना।
ReplyDeleteएक बड़ा सा था दालान
ReplyDeleteअब तो कई कमरे हो गये
सबको अलहदा रहना था
देख लो घर मँहगे हो गए..
बहुत खूब, नवीन भाईजी.
--सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)
दिखते नहीं माँ के आँसू
ReplyDeleteहम सचमुच अंधे हो गए
---क्या बात है...क्या बात है