6 अगस्त 2016

हमारा बन के हम में ख़ुद समा जाने को आतुर हैं - नवीन

हमारा बन के हम में ख़ुद समा जाने को आतुर हैं।
हृदय के द्वार खुल जाओ – किशन आने को आतुर हैं॥
अगर हम बन सकें राधा तो अपने प्रेम का अमरित।
किशन राधा के बरसाने में बरसाने को आतुर हैं॥
हमें मासूमियत से पूछना आता नहीं, वरना।
सनेही बन के श्यामा-श्याम समझाने को आतुर हैं॥
नवीन’ इक मैं हूँ जो पीछा छुड़ाता रहता हूँ उन से।
और इक वो हैं जो टूटे तार जुड़वाने को आतुर हैं॥

नवीन सी चतुर्वेदी

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222


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