ब्रज गजल - मनोज चतुर्वेदी

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मनोज चतुर्वेदी 

दुरबल कों न सताऔ भैया। 
मानुस बनौ, पसीजौ भैया॥
हम जैसे लोग'न कौ जीवन। 
जैसौ है, नीकौ है भैया॥
अपने'न के होमें कि बिराने। 
सब के अँसुआ पौंछौ भैया॥
गलती हू तौ सिखलामें हैं। 
बढते पाँय न रोकौ भैया॥
कहाँ हुते और कहाँ आय गए। 
कब'उ तौ मन में सोचौ भैया॥
अपने हौ तौ घर में डाँटौ। 
चौरे में मत टोकौ भैया॥
अपनौ हिरदौ हार कब'उ तौ।
मन 'मनोज' कौ जीतौ भैया॥

मनोज चतुर्वेदी
9004691486



ब्रज गजल

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