29 सितंबर 2012

कुछ फुटकर दोहे

कागा सब तन खाइयो, चुन-चुन खइयो मास
दो नैना मत खाइयो, पिया मिलन की आस
[इस दोहे के रचयिता के बारे में संदेह है]

केशवदास:-
केशव केसन असि करी जस अरि हु न कराय
चन्द्र वदन मृग लोचनी बाबा कह कें जाय

चंदबरदाई:-
चार बास चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमान
ता ऊपर सुल्तान है मत चूकै चौहान

रसलीन:-
कुमति चंद प्रति द्यौस बढ़ि मास मास कढ़ि आय।
तुव मुख मधुराई लखे फीको परि घटि जाय

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर दोहे ....
    पढवाने का शुक्रिया.
    सादर
    अनु

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    1. बहुत सुन्दर। केशव के दोहे को दुबारा स्मृति में लाने के लिये। धन्यवाद।

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  2. बहुत सुन्दर प्रयास हुआ है, भाई जी.
    हार्दिक बधाई

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  3. पहला दोहा बाबा फरीद का तो नहीं, ११ वीं शताब्दी के।

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  4. बहुत सुंदर. फिर से पढकर मज़ा आया.

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  5. जब मिडिल सेक्शन में पढते थे तब ये दोहे कंठस्त किये थी |फिर से उन्हें पढना बहुत अच्छा लगा |
    आशा

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  6. सौन्दर्य:-
    नर्म, गुनगुनी धूप, खिले जिस तरह पौष में
    ऐसा सौम्य-स्वरूप, केवल बिटिया में दिखे
    सौंदर्य में निखार शब्द यूं भी कराते है!! बहुत सुंदर। बधाई
    कहकर पकड़ो चोर, पीछे भागा मोर है
    क्या यह छंद के हिसाब से है ठीक है? पहली बार इसे सही समझना चाहती हूँ

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  7. प्रवीण जी!
    आप सही हैं. yah doha baab fareed ka hee hai aur guru granth saheb men sankalit hai. mool roop pooree tarah bhinn hai. hindi men isee roop men prachalit hai.

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  8. बिहारी के शब्दों में:
    देखन में छोटन लगै घाव करै गंभीर

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