पृष्ठ

जब भी सर चढ़ के बहा है दरिया - नवीन

जब भी सर चढ़ के बहा है दरिया
सब की आँखों में चुभा है दरिया

आब को अक़्ल भी होती है जनाब
कृष्ण के पाँव पड़ा है दरिया

ख़ुद-ब-ख़ुद अपनी हिफ़ाज़त करना
राम को लील चुका है दरिया

बेकली से ही उपजता है सुकून
जी! सराबों का सिला है दरिया

बाक़ी दुनिया की तो कह सकता नहीं
मेरी धरती पे ख़ुदा है दरिया

ख़ुद में रखता है अनासिर सारे
एक अजूबा सा ख़ला है दरिया

:- नवीन सी. चतुर्वेदी 

बहरे रमल मुसद्दस मखबून मुसककन
2122 1122 22

फ़ाएलातुन फ़एलातुन फ़ालुन

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें