अजाने प्रदेश में
एक अनजान जगह में
बड़े सबेरे उठकर
ढूंढता हूं अपनापन
न भाषा साथ देती है
नलोग, न वातावरण
एक अनजान जगह में
बड़े सबेरे उठकर
ढूंढता हूं अपनापन
न भाषा साथ देती है
नलोग, न वातावरण
खिड़की से निहारता हूं
पेड़ पौधे, तितलियां उछलते कूदते बच्चे
सबके सब वैसे ही निश्चल
जैसे कि मेरे अपने प्रदेश में
पेड़ पौधे, तितलियां उछलते कूदते बच्चे
सबके सब वैसे ही निश्चल
जैसे कि मेरे अपने प्रदेश में
देर तक विचारता हूं
अजनबीपन के कारकों को
भाषा और जगह तो समझ में आती हैं
पर रंग तो हमने नहीं बनाये
हमने दुनिया भी तो नहीं बनाई
अजनबीपन के कारकों को
भाषा और जगह तो समझ में आती हैं
पर रंग तो हमने नहीं बनाये
हमने दुनिया भी तो नहीं बनाई
हां प्रदेश हमने बनाये
बोली और भाषाएँ रचीं
दीवार भी हमने ही खड़ी कीं
और बंद कर लीं दिलों दिमाग की खिड़कियां
बोली और भाषाएँ रचीं
दीवार भी हमने ही खड़ी कीं
और बंद कर लीं दिलों दिमाग की खिड़कियां
अब जब खोलना चाहता हूँ खिड़कियाँ
तब अपनी ही बनाई चीजें
बाधा बन कर खड़ी हो गईं हैं।
तब अपनी ही बनाई चीजें
बाधा बन कर खड़ी हो गईं हैं।
हृदयेश मयंक
9869118707
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