पहले तो हम को पंख हवा ने लगा दिये
और फिर हमारे
पीछे फ़साने लगा दिये
दुनिया हमारे
नूर से वैसे भी दड़्ग थी
और उस पे चार-चाँद
पिया ने लगा दिये
तारे बेचारे
ख़ुद भी सहर के हैं मुन्तज़िर
सूरज ने उगते-उगते
ज़माने लगा दिये
ऐ कारोबारे-प्यार
ख़सारा ही कुछ उतार
साँसों ने बेशुमार
ख़ज़ाने लगा दिये
कुछ यूँ समय
की जोत ने रौशन किये दयार
हम जैसे बे-ठिकाने
ठिकाने लगा दिये
कमज़ोर याददाश्त
को मज़बूत यूँ किया
यादों के इर्द-गिर्द
तराने लगा दिये
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
बहरे मज़ारिअ मुसमन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़
मफ़ऊलु फ़ाइलातु मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
221 2121 1221 212
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