कहानी – प्रोफेशनल – जया आनन्द

आँखे सनी हों या आँखे भरी हों ,दोनो ही उदासियाँ बिखेरती हैं । आज आंखें भरी थी दो नहीं कई आँखें ,आँखों से बरस रही थी उदासियां उन बरसती उदासियों में एक चेहरा उभर रहा था साँवला  सा 

कुछ अपना सा , हाँ वह एक सांवली सी दुबली पतली लड़की थी चेहरे पर कोई आकर्षण नहीं कपड़े भी साधारण से कुल मिलाकर ऐसा कुछ भी नहीं जो मन में जगह बना ले पर फिर भी वह लड़की मन के एक कोने में कब आ कर चुपके से बैठ गई पता ही नहीं चला।

 " हाय मैम!  यह सपना है मैथ्स की नई टीचर " स्टाफ रूम में एक टीचर ने मेरा उससे परिचय कराया।  मैंने मुस्कुरा कर उसकी ओर देखा बदले में उसने भी एक हल्की सी मुस्कान बिखेर दी । सांवली से चेहरे पर स्वच्छ धवल मुस्कान ने कुछ भाव उसके प्रति जगा दिये । सच एक मुस्कान कितने सारे प्रश्नों का समाधान कर देती है ,कौन ..क्या.. कैसा ?

    मैं लेक्चर लेने चली गई और फिर कॉलेज की नित्य प्रति की क्रियाएं जिसमें छात्र-छात्राओं को डांटना भी शामिल होता है

  'कैसे सुधरेंगे आजकल के छात्र ! टीचर को कुछ समझते ही नहीं …..नहीं कुछ विद्यार्थी तो बड़े अच्छे होते हैं और कुछ बेहद लापरवाह ' इन्हीं सारे विचारों का मंथन करते हुए जब लेक्चर लेकर मैं वापस रूम की ओर आ रही थी तो क्लास में फंसी हुई सी आवाज आई झांक कर देखा

 'अरे ! यह तो सपना है ' ,पूरी क्लास शांत होकर उसका लेक्चर सुन रही थी।  वाह ! आवाज में  फँसाव था लेकिन एक बुलंदी भी थी , कुछ बात तो है इसमें ' मन में मैंने सोचा ।

     कॉलेज है तो सोमवार से शनिवार कैसे आता है ,भागम -भाग में पता ही नहीं चलता ,संडे इज़ द हॉलीडे , उस दिन आभास होता है कि  इन छः दिनों में क्या-क्या घटनाएं घट गयीं ।

 दूसरे या तीसरे दिन ही शुभा ने बताया  "उसकी मां को कैंसर है "

 "किसकी ? " मैंने चिंतित स्वर में पूछा

 "नई  टीचर का क्या नाम है ...हां वो सपना .." शुभा जल्दी में बताकर लेक्चर में चली गई ।

   मैं हतप्रभ रह गई । इतनी छोटी लड़की और इतना दुख... हम अपने ही दुख से दुखी रहते हैं कि औरों के दुख कष्ट का अंदाजा भी नहीं होता मन सचमुच विह्वल हो उठा ।

    सपना  धीरे-धीरे सब में घुलने मिलने लगी। हम सबका इंटरवल में लंच करना एक नियम तथा चाहे कितने भी वाद-विवाद क्यों न हो ।अब सपना का भी डब्बा खुले लगा था। मुंबई में सब के लंच बॉक्स डब्बे हो जाते हैं ।

 " सौम्या ! क्या सब्जी लाई है ?" शुभा ने जोर से पूछा

 "आज  मैं राज़मा लायी हूँ " मैंने ऐसे कहा मानो कोई बहुत बढ़िया चीज बनाई है

 " नैंसी अपना आईडी इडली सांभर दे मेरे पास ,.....पास करो डब्बा भूख लगी है  " लंच टाइम में मचलती आवाजों और विविध स्वाद के बीच सपना के डब्बे में ज्यादातर उबला दाल चावल और अचार ही रहता था । विश्वजा ने एक दिन उससे पूछ लिया  "हर दिन दाल चावल ही क्यों और वह भी उबले हुए ?"

 "क्या करूं मैं ... अब मुझे ही बनाना पड़ता है मम्मी तो बीमार है, पापा भाई सबके लिए बनाना और सुबह-सुबह गोरेगांव से कॉलेज के लिए निकलना... पूरे दो घंटे लगते हैं  फिर मुझे ज्यादा कुछ बनाना भी नहीं आता.."  सपना लगातार बोलती चली गई अपनी कुछ भारी और फँसी सी   आवाज में।

  अभी वह छोटी सी लड़की थी और इतनी जिम्मेदारी..सोचकर मेरा मन भारी होजाता पर जीवन में दुख लगातार बने रहते हैं तो व्यक्ति जीवन जीना सीख लेता है और उन पलों में भी सुख की तलाश कर लेता है ।

  "चलो न मैम खो-खो खेलते हैं  ,चलो न प्लीज़  "     सपना ने चहकते हुए कहा

  "खो - खो और हम टीचर्स ! " पर सपना के प्यार भरे आमंत्रण को हम मना नहीं कर पाए और खो- खो खेल कर कॉलेज का भरपूर मजा लिया । सपना के इस अंदाज से हम सब के मन के बच्चा कहीं जग गया था । अब कभी  कॉलेज में डांडिया होता तो कभी वॉलीबॉल का खेल ,नहीं तो मोबाइल के गानों पर सपना का डांस । पारम्परिक शिक्षक की छवि को तोड़ने का सारा श्रेय सपना को ही जाता है ।

     कॉलेज में शोर न हो तो उसके अस्तित्व पर ही प्रश्रचिन्ह  लगने लगे।  विद्यार्थियों का शोर , लेक्चर्स का शोर , कॉलेज में बजने वाली घण्टियों का शोर ..पर ये शोर कुछ अलग था-

  कोई बेहोश  हो गया था  । कौन ? कोई छात्र ...नहीं कोई टीचर !... मेरे मन मस्तिष्क में अनेक सारे प्रश्नों का जाल बिछने लगा । मैं पाँच मिनट पहले ही लेक्चर छोड़ कर आ गई । वहां का नजारा ही आश्चर्य में डालने वाला था। सपना बेहोश हो गई थी । सभी टीचर, अन्य कर्मचारी सपना के चेहरे पर पानी डाल रहे थे  उसे होश में लाने की कोशिश कर थे पर उसे होश ही नहीं आ रहा था।  पता लगा सपना के दस हज़ार गायब हो गए हैं जो उसके भाई की फीस के  लिए थे।

     सपना को होश नहीं आया हमने उसको पास के हॉस्पिटल में भर्ती कराया और उसे  जैसे ही होश आया वह तड़प उठी

   " पापा को मत बताना…. प्लीज मैम ..पापा को …" उस दिन उसकी आर्थिक स्थिति का भी हमें अंदाजा हो गया था।

     साथ रहने से किसी को न जानना भी चाहो तो भी उससे परिचय प्रगाढ़ होने लगता है । सपना की सारी गतिविधियां ,उसकी परेशानियां उसकी खिलखिलाहट सबसे हम सब क्रमशः परिचित होते जा रहे थे और उसके सुंदर और बड़े बैग…

   "बड़ा सुंदर और कितना बड़ा बैग है सपना "! शुभा ने थोड़ा हंसते हुए व्यंग्यात्मक लहजे में कहा

  "अरे ! उसके बॉयफ्रेंड ने दिया है " विशाखा आंखें मटकाते हुए बोली  । मेरे लिए यह बात बिल्कुल अचंभे वाली थी या शायद ऐसी जिसे मैं सामान्य रूप से नहीं ले पाती शायद मध्यमवर्गीय शहर की पृष्ठभूमि कारण रही हो जहाँ किसी को पसंद करना तो मुझे मान्य लगता था पर ब्वॉयफ्रेंड ,गर्लफ्रेंड बताने में एक अपराध बोध  सा प्रतीत होता पर महानगरों की बात अलग है ,यहाँ तो हर किसी का बॉयफ्रेंड, गर्लफ्रेंड है तो सपना का भी है इसमें अजीब कैसा पर मैं अपने मन का क्या करूं उससे तो अजीब लग रहा था। अभी तक सपना के सकारात्मक पहलू मेरे सामने थे आज एक पहलू जो मेरी नजर में नकारात्मक था, सामने था ।उपहारों  का लेनदेन साथ में घूमना…. क्या है यह ! ….पर सपना में ऐसा क्या था कि इस  बात को भी मेरा मन स्वीकारता चला गया ।

   मैंने भी कहा  " सपना जो घूम फिर रही  हो तो शादी भी उसी से  करना  " 

 सपना बस मुस्कुरा देती । उसका उत्तर न हाँ होता और न नहीं ।

    कॉलेज है तो परीक्षाएं  हैं ,परीक्षाएं हैं तो कॉपियाँ हैं ।  कॉपियाँ समय से जांची जाए इस बात को लेकर होड़ लगी रहती  । घरेलू परीक्षाओं में भी कॉपियां चेक करने की होड़ । कॉलेज के स्टाफ रूम में पहुंचते ही शोर सुनाई पड़ा -

 " कौन करेगा मेरी कापियों का करेक्शन , रिजल्ट कैसे बनेगा  ?"सायली ज़ोर -ज़ोर से चीख रही थी । 'हुआ क्या ? किसकी बात हो रही है?'  मैं सोच में पड़ गयी ।

 " मैथ्स की कापियां चेक करने के लिए किसी को दे नहीं सकते ,मेरे क्लास का रिजल्ट कैसे बनेगा "? सायली की कर्कश आवाज़ पूरे स्टाफरूम में गूंज गयी ।

 " सपना की माँ  नहीं रही और तुम्हें कापियों की पड़ी है ! " शुभा सायली पर विफर पड़ी ।

   "क्या सपना की माँ नहीं …." वाक्य अधूरे ही छूटते जा रहे थे और मेरे मन में दर्द और पीड़ा का समंदर हाहाकार कर रहा था । छोटी सी सपना बिना माँ के …. माँ कैंसर से पीड़ित थी पर  मां का होना ही अपने आप में संपूर्ण भरता है । गुस्से से भरी तिलमिला गई थी मैं ..ये रूखे लोग   नहीं समझेंगे दूसरे की पीड़ा और दर्द । महानगरों का रूखापन  साफ झलक रहा था कुछ चेहरों पर ।

    कहते हैं वक्त कितना भी कठिन हो गुजर जाता है । वक्त गुजरा और सपना अपने सब दुख कष्ट को समेटकर कॉलेज आयी और धीरे-धीरे कुछ समय बाद उसकी चहक से स्टाफरूम फिर से गुलजार होने लगा।

      नया एकेडमिक सेशन शुरू हो गया था इसलिए कुछ नई बात हो और सपना तो हमेशा कुछ नया  करने को तैयार ।नया खून, नया जोश ,उत्साह ,उमंग से भरा हुआ व्यक्तित्व था सपना का व्यक्तित्व  " क्यों न हमलोग इंटरकॉलेजिएट डांस  कॉम्पटीशन रखे " सपना पूरे जोश से कहा । मैं भी तो कुछ ऐसा ही रचनात्मक करना चाहती थी  । मैं और मेरे मित्र जो सचमुच मेरे मित्र थे उन्होंन अपनी स्वकृति दे दी  और फिर बाकी टीचर्स ने भी हामी भर दी ।

 सपना के साथ ये प्रस्ताव हमने प्रिंसिपल और मैनेजमेन्ट के सामने रखा ,प्रस्ताव पास भी हो गया 

   सपना को इस इवेंट के प्रमुख बनाया गया मैं और मेरे मित्र  तो बहुत खुश हुए पर कुछ शिक्षकों की आंखों में ईर्ष्या की चिंगारी दिखाई पड़ने लगी " सपना को क्यों प्रमुख बनाया गया ,हम भी तो सीनियर हैं वगैरह-वगैरह "

     सब की सलाह से इवेंट का नाम रखा गया 'खनक'  आखिर अंतर महाविद्यालय नृत्य प्रतियोगिता जो थी ।  हम सभी शिक्षक अपना अपना काम बखूबी कर रहे थे लेकिन सपना अपने सपने को साकार करने में लगी थी यानी भागदौड़ बड़ी-बड़ी हस्तियों को बुलाने की जद्दोजहद ,स्पॉन्सर्स  के लिए दौड़ना ,कार्यक्रम की योजना... आदि।

    मैं सांस्कृतिक प्रमुख थी इसलिए मेरा और सपना का संपर्क बहुत अधिक था ।

  " सौम्या मैम! आज मैं शिल्पा के सेट पर जा रही हूं  देखते हैं प्रोग्राम में आती है या नहीं ...आज एलएनटी  के ऑफिस जाना है .."  शायद इन सारे समय के बीच मैंने पाया उसका बड़ों के प्रति सम्मान, हर बात में हमारी राय लेना, बच्चों के बीच उसकी लोकप्रियता साथ ही नेतृत्व क्षमता ,यह सारे गुण शिक्षकों की आंखों में चुभने लगे । यह सब देखकर मैं अचंभित थी । इतना द्वेष,इतनी ईर्ष्या  जलाकर खाक कर देगी इन्हें ..।

   कार्यक्रम बहुत सफल हुआ । बड़ी-बड़ी हस्तियां  आयीं । कॉलेज का पेपर में नाम आया और साथ ही सपना को भी यश मिला बहुत खुश हुए ,हम सब झूम उठे ….नहीं शायद सब नहीं हममें से कुछ लोग खुश थे... कुछ को तो सपना की सफलता काट रही थी-

  " एक जूनियर टीचर को इतना इम्पोर्टेंस  ' ये थी उनकी भावना  सपना के प्रति जो धीरे-धीरे अब उनके व्यवहार में परिवर्तित होने लगी  थी ।अब कॉलेज में जो भी काम हो उसमें सपना की आलोचना करना ,उसके पीछे पड़ना, उसकी हर बात को काटना शुरु हो गया था।  हम कुछ शिक्षक सपना के साथ थे और उसके लिए कुछ नहीं कर पा रहे थे लेकिन सपना के व्यक्तित्व में एक साहस और दृढ़ता  थी जो सब से मोर्चा लेने को तैयार रहती थी।

    सपना की मेहनत ,लगन और उत्साह उसकी बहुत सारी कमियों को ढक लेता था।

 " मैं अपने बॉयफ्रेंड से शादी नहीं करूंगी " सपना स्टाफरूम बैठे हुए बोली

 " लेकिन बर्थडे गिफ्ट लेती है ,घूमती है तो शादी क्यों नहीं.." मैंने उसे अपनी मध्यमवर्गीय पारंपरिक दृष्टि से इस विषय पर थोड़ा गुस्सा करते हुए समझाया । उसका अपने ऊपर पैसे खर्च करना ,अपने जन्मदिन के लिए पन्द्रह  दिन पहले से तैयारी करना, विद्यार्थियों के साथ डांस

करना... सच में सपना अपने आप में अनूठी थी ।यह आधुनिक लड़की अपूर्व ऊर्जा के साथ आगे बढ़ना चाहती थी  लेकिन कुछ लोग उसके आगे बढ़ने में बाधक थे  जलते थे सपना से  ।सपना यह सब सहने वालों में से नहीं थी ।

   मैं लेक्चर से लौटी तो शुभा ने गुस्साते हुए कहा " देखो सौम्या ! सपना ने क्या किया " मैं विस्मय में थी ….क्या हुआ

 "ऐसे कोई लिखता है क्या  ?"

 "क्या लिखा है बोलो तो ..”

 " दे आर हैरीसिंग मी टू मच ..अगर मुझे कुछ भी होता है तो इसके ज़िम्मेदार वे ही होंगे " सपना ने स्टाफरूम में घुसते ही हँसते हुए कहा

   "क्या सपना ,क्या तरीका है ये .." मैं गुस्सा पड़ी

  " नो मैम ! कुछ गलत नहीं ..मुझे उन्हें सबक सिखाना ही था  " सपना की आवाज़ तेज़ हो गयी थी ।

  " क्या तरीका है यह  ,सही  नहीं किया सपना तुमने ...बहुत बड़ी गलती  कर दी ,ठंडे दिमाग से काम लेना था  " मैं खुद से बोले जा रही थी

    ...और फिर स्वार्थ ,जलन ,ईर्ष्या कॉलेज की घटिया राजनीति ने  सपना का सपना तोड़ दिया।

    आज आँखे भरी थीं  दो  नहीं कई आँखे और आंखों से बरस रहीं थीं  उदासियां । आज  कॉलेज का आखिरी दिन था ।अब गर्मी की लंबी छुट्टी मिलेगी, बाहर घूमने की तैयारी पर यह सब धुंधलके में खोने लगा । सपना आंखों से आंसू छलके पड़ रहे थे ।। " क्या हुआ सपना ? " सपना न्यूज़ पेपर हमारी ओर बढ़ाया

  " यह  क्या … कॉलेज में मैथ्स टीचर के लिए वेकेंसी ! क्यों, किसलिए क्योंकि सपना ने कॉलेज में काम किया या उसने कॉलेज के इतने बड़े कार्यक्रम  का सपना न केवल देखा बल्कि उसे साकार भी किया या कि इसलिए कुछ शिक्षकों की अपेक्षा वह अधिक महत्वपूर्ण हो गई ….उसे क्या चाहिए था सब कुछ तो नहीं लेकिन..

   सपना चली गई, उसकी सीट खाली थी कोई न कोई तो भरेगा उसे  पर उसकी जगह तो कोई नहीं ले सकता जो हम सबके मन में बनी थी ।

        लेक्चर लेने जाओ तो कभी उसकी फंसी आवाज कानों में बजने लगती, कॉलेज के ग्राउंड में कभी सपना  विद्यार्थियों के साथ नाचती दिखाई पड़ती और कभी स्टाफ रूम में लगता कि वह आकर बोलेगी  "चलो न मैम  डांस करते हैं या खो खो खेलते हैं" ।  सच !सपना की हर बात मेरे सामने एक चलचित्र की तरह घूम रही थी और हृदय पीड़ा से भरता जा रहा था।

     नया शैक्षिक सत्र शुरू हो रहा था, नहीं मुझसे नहीं हो पाएगा अब कुछ ,कलचरल इवेंट फिर से  करना... नहीं मैं कैसे कर पाऊंगी ,  सपना  होती तो  पर वो नहीं है ।

     कॉलेज का सारा स्टाफ अपने कार्य को बखूबी कर रहा था। हर शैक्षिक सत्र के शुरू में अफरा-तफरी रहती है वह शुरू हो गई थी पर मैं नहीं कर पा रही थी अपना काम ।

 "   शुभा !मैं क्या करूं ..कहां से लाऊँ वो उत्साह ,कुछ मन नहीं लग रहा किसी काम में "

 "  सौम्या होता है ऐसा कभी-कभी... तुम विद्यार्थियों को देखो और उनके लिए काम करो एंड बी प्रोफेशनल " शुभा ने स्नेह से समझाते हुए कहा

   " हाँ शुभा मैं कोशिश करूंगी ..कोशिश.." बोलते हुए मेरी आवाज रुंध गई ।

  शुभा के शब्दों का असर मुझ पर धीरे-धीरे होने लगा। विद्यार्थियों की कोई गलती नहीं इसमें  हाँ मुझे उनके लिए अपने उत्साह को जगाना होगा एंड आई हैव टू बी प्रोफेशनल "और मैं प्रोफेशनल होने की कोशिश में जुट गई ।


(सौजन्य - समीक्षा तैलंग)

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