मिरे क़दमों में दुनिया के ख़ज़ाने हैं उठा लूँ क्या - असलम राशिद

 


मिरे क़दमों में दुनिया के ख़ज़ाने हैं उठा लूँ क्या ।

ज़माना गिर चुका जितना मैं ख़ुद को भी गिरा लूँ क्या ॥

 

तिरा चेहरा बनाने की जसारत कर रहा हूँ मैं ।

लहू आँखों से उतरा है तो रंगों में मिला लूँ क्या ॥

 

सुना है आज बस्ती से मुसाफ़िर बन के गुज़रोगे ।

अगर निकलो इधर से तो मैं अपना घर सजा लूँ क्या ॥

 

भरा हो दिल हसद से तो नज़र कुछ भी नहीं आता ।

मैं नफ़रत में अदावत में मोहब्बत को मिला लूँ क्या ॥

 

कि बरसों से तो गिन गिन कर मैं इन को ख़र्च करता हूँ ।

अभी भी चंद साँसें हैं तिरी ख़ातिर बचा लूँ क्या ॥

 

असलम राशिद

1 टिप्पणी:

  1. बहुत बहुत शुक्रिया नवीन भाई, साहित्यम का भी बहुत शुक्रिया 🙏🏻🙏🏻🌹🌹🌹

    जवाब देंहटाएं

टिप्पणी करने के लिए 3 विकल्प हैं.
1. गूगल खाते के साथ - इसके लिए आप को इस विकल्प को चुनने के बाद अपने लॉग इन आय डी पास वर्ड के साथ लॉग इन कर के टिप्पणी करने पर टिप्पणी के साथ आप का नाम और फोटो भी दिखाई पड़ेगा.
2. अनाम (एनोनिमस) - इस विकल्प का चयन करने पर आप की टिप्पणी बिना नाम और फोटो के साथ प्रकाशित हो जायेगी. आप चाहें तो टिप्पणी के अन्त में अपना नाम लिख सकते हैं.
3. नाम / URL - इस विकल्प के चयन करने पर आप से आप का नाम पूछा जायेगा. आप अपना नाम लिख दें (URL अनिवार्य नहीं है) उस के बाद टिप्पणी लिख कर पोस्ट (प्रकाशित) कर दें. आपका लिखा हुआ आपके नाम के साथ दिखाई पड़ेगा.

विविध भारतीय भाषाओं / बोलियों की विभिन्न विधाओं की सेवा के लिए हो रहे इस उपक्रम में आपका सहयोग वांछित है. सादर.