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अमावस रात को अम्बर में ज़ीनत कोई करता नईं - नवीन

अमावस रात को अम्बर में ज़ीनत कोई करता नईं
मेरे हालात पे नज़रेइनायत कोई करता नईं

मैं टूटे दिल को सीने से लगाये क्यूँ भटकता हूँ?
यहाँ टूटे नगीनों की मरम्मत कोई करता नईं

फ़लक पे उड़ने वालो ये नसीहत भूल मत जाना
यहाँ उड़ते परिंदों की हिफ़ाजत कोई करता नईं

मुहब्बत का मुक़दमा जीतना हो तोलड़ो ख़ुद ही
यहाँ दिल जोड़ने वाली वकालत कोई करता नईं

ख़यालो-ख़्वाब पर पहरे ज़बानो-जोश पर बंदिश
परेशाँ हैं सभी लेकिन शिकायत कोई करता नईं

:- नवीन सी. चतुर्वेदी 

बहरे हजज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222 

5 टिप्‍पणियां:

  1. आ. नवीनजी
    मैं अपने दिल को सीने से लगाये दर-ब-दर भटका
    मगर टूटे नगीनों की मरम्मत कोई करता नईं
    मुहब्बत का मुक़दमा जीतना हो तो, लड़ो ख़ुद ही
    यहाँ दिल जोड़ने वाली वकालत कोई करता नईं

    वाह !
    उम्दा गजल...
    सादर बधाई....

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  2. फ़लक पे उड़ने वालो ये नसीहत भूल मत जाना
    यहाँ उड़ते परिंदों की हिफ़ाजत कोई करता नईं

    बरहतरीन ग़ज़ल !!

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (30-12-2012) के चर्चा मंच-1102 (बिटिया देश को जगाकर सो गई) पर भी की गई है!
    सूचनार्थ!

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  4. आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 02/01/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

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  5. यह रचना बहुत अच्छी लगी |
    आशा

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