6 अगस्त 2016

और तआरुफ़ हमारा हो भी क्या - नवीन

और तआरुफ़ हमारा हो भी क्या
इक शनावर जो डूब तक न सका
कुछ भँवर यूँ उचट पड़े थे ज्यूँ
ख़ुदकुशी पर हो कोई आमादा
एक बगूले की बात थोड़ी है
हर बगूले ने गर्द को रौंदा
बुलबुले सत्हे-आब को छू कर
हम को दुनिया का दे गये नक्शा
वो तो साँसों ने शामें सुलगाईं
आदमी को ये इल्म ही कब था
अब हवाओं के दाम खुलने हैं
ख़ुश्बुओं का तो हो चुका सौदा
अब वो ख़ुद को समझते हैं सूरज
जिन सितारों का चाँद मामा था
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122 1212 22

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें