प्रभातं क्व यातं निशा
पृच्छतीयम्
दिगन्तं तमः किं विभा पृच्छतीयम् ।
सुनहरा सबेरा कहां रुक गया
है
अंधेरे से सहमी निशा पूछती
है।
सखे ! स्वादुरेवं कथं
सैन्धवस्य
निशीथे व्रणस्य कथा पृच्छतीयम् ।
बताओ जरा स्वाद कैसा नमक का
छिपे घाव की यह व्यथा पूछती
है।
कदा शापमुक्तिः कदा सङ्गमश्च
प्रतीक्षा विवर्णाधुना
पृच्छतीयम् ।
कहां शाप से मुक्ति के बाद
संगम
प्रतीक्षा उदासी भरी पूछती
है।
गिरेस्तुङ्गशृङ्गाच्चला
मोदमग्ना
गृहं सागरस्यापगा पृच्छतीयम् ।
नदी ऊंचे पर्वत से निकली
भटकती
समन्दर का मुझसे पता पूछती
है।
गता शुष्कतामीप्सिता वल्लरी
मे
प्रियःक्व वसन्तोSधुना
पृच्छतीयम् ।
वो रूठी हुई बेल मुझसे
लिपटकर
कहां मेरा फागुन गया पूछती
है।
कदा श्लोकमापद्यते शोकमूले
पुनः क्रौञ्चगाथा स्मृता पृच्छतीयम् ।
कथा कोई कब वेद के जैसी पावन
करुण क्रौंच की वेदना पूछती है।

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