बड़ा ही लुभावना कोटेशन है ये "अति सर्वत्र वर्जयेत"। सच ही तो है, मसलन:-
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खाते ही चले जाओ तो पेट फट जाएगा, ये बात रिश्वत खाने वाले नेताओं पर लागू नहीं होती।
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रोते ही चले जाओगे तो आँसू सूख जाएँगे - टी वी. सेरियल्स के मामलों में एप्लीकेबल नहीं, वहाँ तो आज सिर्फ़ आँसू ही बिक रहे हैं।
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बैठे
ही रहोगे तो निष्क्रिय हो जाओगे, ये कॉंग्रेस पर लागू नहीं, वो तो मंहगाई
झेलती जनता को बिलखता देख कर भी हाथ पर हाथ धरे ही बैठी हुई है कब की।
और
भी कई सारे उदाहरण दिए जा सकते हैं। 'अति' किसी भी बात की अच्छी नहीं। आज
कल एक और 'अति' दीखने में आ रही है - हँसने की अति। तमाम टी. वी. चेनल्स पर
जात जात के कॉमेडी शो परोसे जा रहे हैं। कॉमेडी करने के नये नये नुस्खे
ईज़ाद किए जा रहे हैं। हँसना एक अच्छी बात है - निस्संदेह - पर कब, कहाँ,
कैसे, क्यूँ और कितना जैसे प्रशनवाचक शब्द इस के साथ भी जुड़े हुए हैं।
विगत
कुछ महीनों के कॉमेडी शो के एपिसोडस पर अगर हम सरसरी नज़र डालें तो स्पष्ट
रूप से वल्गरिटी का बोलबाला दिखाई पड़ता है। यही होता है जब हम 'अति' वाली
सीमा का उल्लंघन कर देते हैं। 'अति' से पहले की अवस्था होती ही है पूर्णता
वाली अवस्था। मानव इतिहास गवाह है, जब जब मनुष्य ने 'अति' को नज़र अंदाज़
किया है - जन साधारण ने देर सबेर दूसरी राह चुनना ही मुनासिब समझा है।
मसलन:-
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हिन्दी फिल्मों में गोविंदा टाइप फिल्म्स
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मंचीय कविता में भावनाओं को उछालती कविताएँ
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इंदिरा गाँधी वाली इमरजेंसी
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भाजपा का शाइन इंडिया
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जनता दल की दलदल
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अन्नू कपूर का तथाकथित नया संगीत, वग़ैरह वग़ैरह
तो
वापस लौटते हैं कॉमेडी वालों की 'अति' पर। हँसने के बहाने और कितना
भटाकाओंगे लोगों को? खास कर वो लोग जो परिवार के साथ रात का खाना खाते हुए
इस तरह के शो देखते हैं, उन के सामने ख़ासी दिक़्क़त आने लगी है। भोंडे
दृश्यों वाले गीत और फिल्मों तथा खिचड़ी टाइप टी. वी. सीरियल्स से ऊब कर ये
लोग कॉमेडी की तरफ मुड़े थे, पर अब तो उन्हें यहाँ
भी....................। हालाँकि 'सब टीवी' के शो'ज़् कुछ हद तक साफ सुथरे
नज़र आते हैं, खास कर उन का लापता ग़ंज़ वाला सीरियल।
हास्य
के बहाने क्या क्या परोसा जा रहा है आज कल!!! अंग प्रदर्शन ऐसा कि फेशन शो
वालों को प्रेरणा लेनी पड़े। डबल मीनिंग वाले डायलोग ऐसे कि कादर खान भी इस
नई कक्षा में शामिल होने के बारे में सोचें और ठहाकों की तो पूछो ही मत।
आपस में एक दूसरे को खींचने के लिए व्यक्तिगत जीवन में घुसने का तो जैसे
लाइसेन्स दे रखा है सभी प्रतियोगियों ने एक दूसरे को। कभी कभी खुद अपने
मुंह पर हाथ रख कर शर्माने का उपालंभ भी दिखला जाते हैं ये लोग। वहाँ
उपस्थित नारी शक्ति भी इस तथाक्तथित हास्य से अभिभूत दिखाई पड़ती है।
दर्शकों का क्या है? टी वी पर आना भाई किसे अच्छा नहीं लगता।
समय रहते यदि ये कॉमेडी शो वाले नहीं चेतते हैं तो बहुत जल्द ही पब्लिक इन से ऊब कर किसी और ज़ानिब रुख कर सकती है।
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