आँधियाँ चल रही हैं लहरा कर - उर्मिला माधव

उर्मिला माधव

आँधियाँ चल रही हैं लहरा कर
मैं भी रख आऊं इक दिया जा कर

हर तरफ रौशनी का आलम है,
तीरगी क्या रहेगी अब आ कर,

इन चरागों में कुछ न कुछ तो है,
लौट जाती है अब हवा आकर,

अब वहां जाने का ख्याल न कर,
दिल जहाँ टूटता है जा-जा कर,

मुझको कंदील सिर्फ़ काफ़ी है,
इसमें रुक जाये है हवा आकर

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