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एक नज़्म - तुफ़ैल चतुर्वेदी

मुझे उसने बताया है
मई में चंद दिन पहले
बहुत ठंडे, बहुत बोझल, बुरे हालात का दिन था
जब उसका ज़हन उलझा था ख़यालों में
लहू बर्दाश्त की हद से गुज़र आया
अना ज़ख्मी हुई
माहौल इस दर्जा सुलग उट्ठा
तहय्या कर लिया उसने
कि अब वो ख़ुदकुशी कर ले
कोई भी रास्ता शायद नहीं होगा
यक़ीनन ही नहीं होगा
वगरना क्यों कमल चाहेगा उसकी पत्तियां बिखरें
धनक क्यों अपने हाथों रंग मसलेगी
गिरा देगी ज़मीं पर अपनी पिचकारी
महक क्यों ख़ुद को अफ़सुर्दा करेगी, रौंद देगी जिस्म अपना
कोई शफ्फ़ाफ़ चश्मा किस लिये ख़ुद अपने हाथों ख़ुद को मिटटी से भरेगा
सितारा कोई, अपनी रौशनी क्यों तीरगी से ख़ुद ही बदलेगा
कोई भी रास्ता शायद नहीं होगा
यक़ीनन ही नहीं होगा
कभी हालत ऐसे मोड़ पर ले आते हैं सांसें
लहू बर्दाश्त की हद से गुज़र जाता है
तेज़ी से सुलगता है बदन, तपती हैं शरियानें
ख़यालो-ख़ाब को रस्ता नहीं मिलता
बस इक आवाज़ पैहम गूंजती है ज़हन के गुम्बद में आओ ख़ुदकुशी कर लें
ये मर्ज़ी थी समय की और वो इस कोशिशे-नाकाम से बच कर चला आया
बहुत गहरा, भयानक, सर्द सन्नाटा मुझे घेरे हुए है
कि जैसे कोई अजगर अपनी कुंडली में मुझे जकड़े निगलना चाहता है
बस इक शिकवा है उससे जिसका शायद हक़ नहीं है
मैं उसकी ज़िंदगी के साथ आऊं ये नहीं मुमकिन
मगर जब मौत चाही उसने तो क्योंकर, नहीं मुझको पुकारा
मुझको क्यों आवाज़ के लायक़ नहीं समझा
मुझे आवाज़ देता,आज़माता, एक तो मौक़ा मुझे देता
मुझे उसने बताया है ………


तुफ़ैल चतुर्वेदी

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