उन्नत धारा प्रेम की, बहे अगर दिन रैन

उन्नत धारा प्रेम की, बहे अगर दिन रैन|
तब मानव मन को मिले, मन-माफिक सुख चैन||
मन-माफिक सुख चैन, अबाधित होंय अनन्दित|
भाव सुवासित, जन हित लक्षित, मोद मढें नित|
रंज किंचित, कोई न वंचित, मिटे अदावत|
रहें इहाँ-तित, सब जन रक्षित, सदा समुन्नत||

[सम+उन्नत=समुन्नत]



अमृत ध्वनि छन्‍द:-

पहली और दूसरी पंक्ति १३+११ = २४ मात्रा [दोहे की तरह]
दूसरी पंक्ति का अंतिम चरण तीसरी पंक्ति के शुरआत में आता है [कुण्‍डलिया की तरह]
तीसरी से छठी पंक्ति हर पंक्ति में कुल २४ मात्रा
हर पंक्ति ८ - ८ मात्रा के तीन भागों में विभक्त
हर भाग के अंत में लघु वर्ण के साथ यति
छन्‍द के शुरू और आख़िर के शब्द समान [कुण्‍डलिया की तरह]
अमृत ध्वनि के विधान का अनुपालन करने के लिए छन्‍द के शुरू में ऐसा शब्द लें जो अंत में भी फिट बैठ सके, यानि वो दो मात्रा का हो या चार मात्रा का पर अंत में लघु वर्ण के साथ यति का आभास उत्पन्न करे

समान ध्वनि शब्दों की आवृत्ति छन्‍द की शोभा बढ़ाती है

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