राजस्थानी गजल - दिन दोपारै रात अठै - राजेन्द्र स्वर्णकार

 


दिन दोपारै रात अठै ! 

सौ-सौ झंझावात अठै !

 

घात पछै पड़घात अठै !

किण सूं करलां बात अठै !

 

मिनखां सूं मिळ' के मिळलां ?

मिनख जिनावर जात अठै !

 

साचो मिनख बण्यां मिलणी,

पग-पग मौत 'र मात अठै !

 

भींतां ख़ूब, घणा गोखा,

नीं आंगण, नीं छात अठै !

 

नीति, धरम सत पर चाल्यां',

भूंड मिलै, ...का लात अठै !

 

भोळां नैं भाठा-किरकिर,

कपट्यां नैं घी-भात अठै !

 

राजिंदर-अभिमन्यू ! चेत !

ब्यूह सात सौ सात अठै !

 

 

दोपारै – दोपहर, अठै - यहां/यहां पर, पड़घात – प्रतिघात, किण सूं – किससे, करलां – कर,

मिळ' - मिल कर, के – क्या, मिळलां - मिल लें, साचो मिनख - सच्चा-खरा मनुष्य, बण्यां - बनने पर, मिलणी - मिलेगी/मिलनी तय है, जिनावरजात - पशुवत (मानवीयता का अभाव), गोखा - गवाक्ष/खिड़कियां/झरोखे, नीं - न तो, नीं - न ही, भूंड - बुराई/निंदा, लात - पैरों से प्रहार/ठोकर, भाठा – पत्थर, कपट्यां नैं - कपटी-कुटिलजन को, चेत ! - सावधान हो जा !


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