मेरी पहिचान - अनासिर मेरे - नवीन


मेरी पहिचान - अनासिर मेरे
मुझ को ढ़ोते हैं मुसाफ़िर मेरे

इस क़दर बरसे हैं मुझ पर इल्ज़ाम
पानी-पानी हैं मनाज़िर मेरे

अस्ल में सब के दिलों में है कसक
ख़ुद मकीं हों कि मुहाजिर मेरे

अब कहीं जा के मिला दिल को सुकून

मुझ से आगे हैं मुतअख्खिर मेरे

10 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा प्रयास हुआ है. मग़र एक पाठक के तौर पर क्या पूछूँगा यह आपको भी पता है... :-))
    सादर

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  2. बहुत हार्ड शब्द हैं...मीनिंग है फिर भी समझने में कठिनाई हुई| जितना समझ में आया वह अच्छा लगा|

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  3. आदरणीय सौरभ भाई जी, प्रणाम।

    मैं आप का मन्तव्य भली-भाँति समझ रहा हूँ, उत्तर में सिर्फ़ इतना ही निवेदन करना चाहूँगा कि इस ब्लॉग पर डिफ़ेरेंट टेस्ट वाली और भी कई ग़ज़लें हैं। मेरा मानना है हलवाई को अपनी दूकान पर सिर्फ़ हलवा ही नहीं, अलग-अलग क़िस्म की अन्य मिठाइयाँ भी सजानी चाहिये। क्या पता किस ग्राहक को क्या मिठाई पसंद आती हो :)

    आप के कंसर्न से असहमत कदापि नहीं, बस अपना पक्ष रखा है तथा वर्तमान में जो आप की पसंद है ऐसी कुछ ग़ज़लों पर काम चल भी रहा है।

    स्नेह सिक्त टिप्पणी के लिए पुनश्च आभार आदरणीय

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  4. @ एक पाठक के तौर पर क्या पूछूँगा यह आपको भी पता है... -सौरभ जी

    @ जितना समझ में आया वह अच्छा लगा | -ऋता शेखर मधु जी
    # मुझे जो कहना था आप दोनों ने पहले ही कह दिया … आभार आप दोनों के प्रति !!


    …और 'उस्ताद' बनने की प्रक्रिया में निरंतर अग्रसर आदरणीय नवीन जी
    बहुत बहुत मुबारकबाद !
    :)




    शुभकामनाओं सहित…
    राजेन्द्र स्वर्णकार

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  5. सौरभ जी
    ऋता जी
    राजेन्द्र जी

    भाई आप तीनों की भावनाओं के प्रति मेररे मन में सम्मान है :) राजेन्द्र भाई एक अच्छा मित्र ही ऐसी चुटकी ले सकता है ........... जियो राजेन्द्र भाई जियो .............. :)

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  6. आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 19/12/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

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  7. आपके ब्लॉग पर आकर हमेशा कुछ सीखने को मिलता है. सुंदर प्रस्तुति.

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