दोहे - डाॅ.मधुर बिहारी गोस्वामी

 


अपने ही कहने लगेंजाओ अब तो दूर ।

तब लगती  है चोट जब, दिखता गहन गरूर।।

 

बूढ़ा तन-मन सोच में, होता है बेचैन।

तब होती है पीर जब, सुनता तीखे बैन।।

 

वृद्धावस्था में जला, अपमानों की आग।

उसी बाप के नाम पर, भोजन करते काग।।

 

जिसे झुलाया पालना,देकर सच्चा प्यार।

होकर वही जवान अब, देता पीर अपार।।

 

यह कैसा वार्धक्य है, हर पल देता दाह।

आँखों के तारे नहीं, करते अब परवाह।।

 

वृद्धाश्रम में देखकर, मन में उठता शोर।

क्यों न हुए संतान-प्रति, ये भी क्रूर-कठोर।।

 

बूढ़ी आँखें सोच में, होती हैं बेचैन।

तब लगती है चोट जब, सुनते तीखे बैन।।

 

अपनों के व्यवहार में, जब आता है खोट।

बढ़ती जाएँ दूरियाँ, तब लगती है चोट।।

 

तन्हाई में जी रहा, खंड-खंड विश्वास।

जीवन का अवसान है, रूठा है मधुमास।।

 

गहन कुहासा आँख में, मन में गहरी पीर।

सघन तिमिर के दौर में, कौन बँधाए धीर।।

 

पेट धँसा, मुख पीतिमा, आँखें थीं लाचार।

वृद्ध पिता का अंत में, टूटा जीवन तार।।

 

तू भी होगा एक दिन,बूढ़ा औ' लाचार।

तुझको भी यह भोगना, सुन ले मेरे यार।। 

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