संस्कृत गजल - पक्ष्मणोरालम्बितस्य हार्द्रस्वप्नस्याधुना - डा० लक्ष्मीनारायणपाण्डेयः


 

संस्कृत (गज्जलिका भावानुवाद सहिता)

 

पक्ष्मणोरालम्बितस्य हार्द्रस्वप्नस्याधुना

भावयामि मौक्तिकाभासे मुदा सञ्जीवनम् ।


स्वप्न जो अटका हुआ है आर्द्र पलकों पर अभी

शुभ्र मोती सा चमकता खिलखिलाता जी उठे 

 

भाषणे वेदान्तचर्चाचातुरीयं चर्चिता

वर्तने चार्वाकचिन्ताचर्वणा संसाधनम् ।

 

मंच से वेदान्त पर भाषण सुनाता जोर से

आचरण में चार्वाकों को जिया जिसने सदा ।

 

यत्र संयुक्ता अरसिकाःशुष्कहृद्यास्तत्र वै

हन्त करणीयं प्रियं कान्तं कवेरुद्भावनम् ।

 

फूल झरने प्रीति पीडा प्यास से जो बेखबर

सोचिए मुझको वहाँ पर गीत गाना है गजब ।

 

केन हा हृद्यानि पाषाणीकृतानि ब्रूहि मां

निर्गतं क्व मानसानां मन्त्रितं सम्मोहनम्।

 

ये जरा बतलाओ किसने दिल यहाँ पत्थर किये

आंख के रस्ते हृदय तक जाने वाले हैं कहां ।

 

चुम्बनैरालिङ्गनैरामोदमग्नं जीवनं

काङ्क्षिते क्व सर्वथा हा शून्यता सञ्चालनम्।

 

आलिंगन चुम्बन सम्मोहन जाने क्या क्या सोचा था

लेकिन ये क्या पसरे देखे आसपास बस सन्नाटे ।

 

गीतमेकं प्रीतिरीतिस्पन्दनैरापूरितम्

कर्तुमीहे त्वत्पुरेSहं मन्दमन्दं गायनम् ।

 

प्रीति की पावन प्रथा के अश्रु सिंचित गीत को

मैं तुम्हारे सामने फिर गुनगुनाना चाहता हूँ ।

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