संस्कृत (गज्जलिका भावानुवाद सहिता)
पक्ष्मणोरालम्बितस्य
हार्द्रस्वप्नस्याधुना
भावयामि मौक्तिकाभासे मुदा सञ्जीवनम् ।
स्वप्न जो अटका हुआ है
आर्द्र पलकों पर अभी
शुभ्र मोती सा चमकता
खिलखिलाता जी उठे ।
भाषणे वेदान्तचर्चाचातुरीयं
चर्चिता
वर्तने चार्वाकचिन्ताचर्वणा
संसाधनम् ।
मंच से वेदान्त पर भाषण
सुनाता जोर से
आचरण में चार्वाकों को जिया
जिसने सदा ।
यत्र संयुक्ता
अरसिकाःशुष्कहृद्यास्तत्र वै
हन्त करणीयं प्रियं कान्तं
कवेरुद्भावनम् ।
फूल झरने प्रीति पीडा प्यास
से जो बेखबर
सोचिए मुझको वहाँ पर गीत
गाना है गजब ।
केन हा हृद्यानि
पाषाणीकृतानि ब्रूहि मां
निर्गतं क्व मानसानां
मन्त्रितं सम्मोहनम्।
ये जरा बतलाओ किसने दिल यहाँ
पत्थर किये
आंख के रस्ते हृदय तक जाने
वाले हैं कहां ।
चुम्बनैरालिङ्गनैरामोदमग्नं
जीवनं
काङ्क्षिते क्व सर्वथा हा
शून्यता सञ्चालनम्।
आलिंगन चुम्बन सम्मोहन जाने
क्या क्या सोचा था
लेकिन ये क्या पसरे देखे
आसपास बस सन्नाटे ।
गीतमेकं
प्रीतिरीतिस्पन्दनैरापूरितम्
कर्तुमीहे त्वत्पुरेSहं
मन्दमन्दं गायनम् ।
प्रीति की पावन प्रथा के
अश्रु सिंचित गीत को
मैं तुम्हारे सामने फिर गुनगुनाना चाहता हूँ ।
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