ग़ज़ल - आधी अधूरी ज़िंदगी आपस में बाँट ली - तरुणा मिश्रा

 


आधी अधूरी ज़िंदगी आपस में बाँट ली 

बुझते दियों ने रोशनी आपस में बाँट ली

 

सब कुछ ख़ुदा पे छोड़ के दोनों हैं मुतमईन

उम्मीद जो थी आख़िरी आपस में बाँट ली

 

दरिया किसी की प्यास का सहरा से जा मिला

दोनों ने अपनी तिश्नगी आपस में बाँट ली

 

ऊला थीं उसकी आँखें तो सानी मेरी नज़र

इक रोज़ हमने शाइरी आपस में बाँट ली

 

क़िस्मत ने जो भी ग़म दिए वो हमने रख लिए

फिर बच गयी थी जो ख़ुशी आपस में बाँट ली

 

मुद्दत के बाद आई थी ज़िंदान की तरफ़

दो क़ैदियों ने जो हँसी आपस में बाँट ली

 

सूखे हुए शजर से लिपट कर मैं रो पड़ी

दोनों ने अपनी बेबसी आपस में बाँट ली

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