हिन्दी गजल - बलवती होती व्यथायें क्या करें - विवेक मिश्र

 


बलवती होती  व्यथायें    क्या करें 

खत्म  हैं   संभावनायें     क्या करें

 

आ गईं होकर विवश कुरुक्षेत्र तक

पांडवों  की  याचनायें    क्या करें

 

दामिनी बन कर धरा पर  गिर रहीं

हैं बहुत विचलित घटायें  क्या करें

 

टूट जायेगी  किसी  पल   साधना

घेरतीं   हैं   अप्सरायें    क्या  करें

 

कोई तो इनको करे आश्वस्त अब

शोक  में  हैं   वर्जनायें   क्या करें

 

दिग्भ्रमित सी  लक्ष्य पर हावी हुईं

द्वंद्व की  परिकल्पनायें   क्या करें

 

आचमन नयनों को भी करना पड़ा

अश्रुपूरित थीं   कथायें     क्या करें

 

विवेक मिश्र


1 टिप्पणी:

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