घनाक्षरी छन्द - राजेन्द्र स्वर्णकार

 


यश अर्थ प्रशंसा न संतुष्टि सम्मान मिले,

ऐसी निरर्थक कविताई मत कीजिए !

न आनंद-प्राप्ति, न अमंगल दुखों का नाश,

जीवन व्यौहार सिखलाए वो सिरजिए !


पद्य का न ज्ञान, गद्य लिखो विदुषी विद्वान,

कविता-सृजन में तो श्रेष्ठतम दीजिए !


चाहिए अभ्यास काव्य-लेखन को, और प्यास,

प्यास बुझ जाए - वो पिलाएं और पीजिए !


1 टिप्पणी:

टिप्पणी करने के लिए 3 विकल्प हैं.
1. गूगल खाते के साथ - इसके लिए आप को इस विकल्प को चुनने के बाद अपने लॉग इन आय डी पास वर्ड के साथ लॉग इन कर के टिप्पणी करने पर टिप्पणी के साथ आप का नाम और फोटो भी दिखाई पड़ेगा.
2. अनाम (एनोनिमस) - इस विकल्प का चयन करने पर आप की टिप्पणी बिना नाम और फोटो के साथ प्रकाशित हो जायेगी. आप चाहें तो टिप्पणी के अन्त में अपना नाम लिख सकते हैं.
3. नाम / URL - इस विकल्प के चयन करने पर आप से आप का नाम पूछा जायेगा. आप अपना नाम लिख दें (URL अनिवार्य नहीं है) उस के बाद टिप्पणी लिख कर पोस्ट (प्रकाशित) कर दें. आपका लिखा हुआ आपके नाम के साथ दिखाई पड़ेगा.

विविध भारतीय भाषाओं / बोलियों की विभिन्न विधाओं की सेवा के लिए हो रहे इस उपक्रम में आपका सहयोग वांछित है. सादर.