करायचे ते करून झाले अता न काही करणे
गझलेसाठी जगणे आणिक गझलेसाठी
मरणे
आठवणींनी धरले आहे माझ्या
दारी धरणे
तशी मागणी मोठी नाही, केवळ मी मोहरणे
नव्या युगाचा राम असा हा
धापा टाकत पळतो
रस्तोरस्ती सुसाट पळती
प्रलोभनाची हरणे
परडी घेउन येइल त्याला फुले
आपली द्यावी
प्राजक्ताने मला शिकविले, दुःखाला
आवरणे
भल्याभल्यांना जमले नाही, ‘प्रदीप’
तुला हे जमले
शब्दांना अंथरणे आणिक अर्थाला पांघरणे
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