मौन नहीं रहिए -
उजियाले की हार देखकर
मौन नहीं रहिए.
अखबारों के खोजी-खबरी
सम्पादक चुप हैं.
जन-जीवन की व्यथा-कथा के -
अनुवादक चुप हैं.
बड़बोली सत्ता के आगे
सब के होंठ सिए.
सबल दंभ से डर कर थर-थर
परंपरा काँपे.
मर्यादा की बेल सूखती-
जड़ अपनी नापे.
अनाचार के कशाघात को
ऐसे मत सहिए.
सरेआम छल-छद्म सियासी
नफरत घोल रहे.
पुरखों के पाले अतीत पर
हल्ला बोल रहे
सावधान इनसे रह अपनी
धारा में बहिए
घूरे के दिन फिरे, हो रही-
बगुलों की पूजा
सम्प्रति इनसे बढ़ कर 'त्यागी'
दिखे नहीं दूजा.
करतब दिखा रहे बाजीगर
नजरें बंद किए.
सगुन कह रहे लोक-चेतना
'रौ' में आएगी.
उन्मादी यह रात सुबह-
घर-घर पहुँचाएगी.
बस थोडा सा और अँधेरा
जी लें पीर पिए.
बहुत बढ़िया
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