पर्णकुटी में तुम्हें न पाया जिस क्षण सीते!
उस क्षण से तुम्हीं को पाया
कण कण में।
शब्दशः मन बसी छवि को उतार
दिया
वन वासियों को दिये हुए विवरण में।
प्रतिदिन कोष भर भर के
निराशा मिली
तुम्हें खोजने के असफल विचरण
में।
भक्त दुःख लेके नित्य जिसकी
शरण आते
वह दुःख लेके जाता किसकी शरण
में।
धारा मेरी प्रीत के भले ही विपरीत बहे
शौर्य मेरा कभी पतवार नहीं
छोड़ेगा
वीर की प्रिया हो पीर पा के
न अधीर होना
तुमको तुम्हारा भरतार नहीं
छोड़ेगा
जिसने भी किया है कु-कृत्य, शिव
की शपथ
उसे मेरा रौद्र अवतार नहीं
छोड़ेगा
देता है वचन सिये! तुमको
तुम्हारा राम
छोड़ेगा संसार किंतु प्यार नहीं छोड़ेगा

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