ऊपर अंबर मौन है, नीचे धरती शांत।
मोबाइल में ढूँढ़ता, पागल मन विश्रांत।।
खेल भावना के लिए, कहाँ बचेगी ठाँव।।
संबंधों में प्यार का, कैसे आए फील।
हमें चाहिए मित्रता, उन्हें चाहिए डील।।
उमड़-घुमड़ कर चल दिया, बिन बरसाए मेह।
धरती को होने लगा, बादल पर संदेह।।
रिश्वत खा होता गया, बेटा नित धनवान।
बापू का बढ़ता गया, बस्ती में सम्मान।।
इस शेयर बाजार में, आये सेठ कुबेर।
बनने में बरसों लगे, मिटते लगी न देर।।
मंचों की भरमार है, कवियों का बाहुल्य।
वाचन चलता मुफ़्त में, श्रोता है बहुमूल्य।।
ऐसा कुछ यूट्यूब पर, ख़बरों का व्यापार।
जितना ज्यादा झूठ हो, उतनी अधिक पगार।।
देती है संकेत यह, भूखी- प्यासी गाय।
रिश्तों से ऊपर हुआ, जीवन में व्यवसाय।।

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