होली - फागुन फिन बगराय - राकेश तिवारी

फागुन फिन बगराय 
राकेश तिवारी 

फागुन फिन बगराय गा, सेमल उडि मड़राय,
महुआ गमकै गाम मा, तन उमगन न समाय.  

घाम गुलाबी अब लगै, सेंकत देंह जुड़ाय,
अलस तोड़ काया जगै, मनवा यवैं  उड़ाय.

बहै फगुनहट मदिर मन, भूलन लागैं आप,  
दूर बजै जब ढोल-ढफ, भीतर मारैं थाप.

झूमत डोलत जग चलै, मारै फगुआ घोल,
लाल गुलाबी रँग सने, गोर-सँवर सब लोग.  
मधुर मद-भरा परब यहु, बुड़की मारौ बूड़, 
बाल-युवा खेला करैं, जशन  मनावैं बूढ़. 

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