क्यों उनका मेयार जिऊँ
मैं अपना
किरदार जिऊँ
मैं अपना
किरदार जिऊँ
जीने के आसार जिऊँ
जीने के
आसार जिऊँ
जब तक
हूँ ख़ुद्दार जिऊँ
जब तक
हूँ ख़ुद्दार जिऊँ
ख़ुद से
इक तकरार जिऊँ
ख़ुद से
इक तकरार जिऊँ
दोबारी तलवार जिऊँ
सर् ये अपूर्ण सिंहावलोकन है । सिंहावलोकन में पहली पंक्ति जिस शब्द पर खत्म हो दूसरी पंक्ति वहीं से शुरू होती है और प्रथम पंक्ति जिस शब्द से शुरू हुई हो, अंतिम पंक्ति उसी पर खत्म होनी चाहिए। ग़ज़ल में सिर्फ़ मतले ही मतले भी तो नहीं हो सकते । ये मेरा एक प्रयास है आप ही की ज़मीन में —
जवाब देंहटाएंसिंहावलोकन ग़ज़ल
जीऊँ बामेयार जीऊँ
जीऊँ निज किरदार जीऊँ ।
जीऊँ अल्हड़ सा जीवन
जीवन क्यों बेकार जीऊँ ।
जीऊँ क्यों ही तरहादार
दार पर चढ़कर यार जीऊँ ।
जीऊँ क्यों डर डरकर मैं
मैं बनकर खुद्दार जीऊँ ।
जीऊँ तकरारों में क्यों
क्यों होकर बेज़ार जीऊँ ।
जीऊँ तो इस तरहा मैं
मैं बन पुरअसरार जिऊँ ।
— ज्योति शंकर पण्डा “हयात”
मयूरभंज, ओड़िशा