विजया-दशमी की शुभ-कामनाएँ
अत्याचार अनीति कौ, लङ्काधीस प्रतीक|
मनुआ जाहि जराइ कें, करें बिबस्था नीक||
करें बिबस्था नीक, सीख सब सुन लो भाई|
नए दसानन - भ्रिस्टाचार, कुमति, मँहगाई;
छल, बिघटन, बेकारी, छद्म-बिकास, नराधम|
"मिल कें आगें बढ़ें, दाह कौ श्रेय ल़हें हम"|
एक अकेलो है चना! कैसें फोड़े भाड़?
सीधी सी तो बात है, तिल को करौ न ताड़||
तिल को करौ न ताड़, भाड़ में जाय भाड़ भलि|
जिन खुद बनें, बनाएँ न ही हम औरन कों 'बलि'|
खुद की नीअत साफ रखें, आबस्यकता कम|
"चलौ आज या परिवर्तन कौ श्रेय ल़हें हम"|
sundar abhivyakti!
जवाब देंहटाएंaaj ke ravan ki pahchan batati aur sankalpshakti ki baat karti kundaliyon ke liye aabhar!
happy dussehra!
जवाब देंहटाएंregards,
adbhut bhaisahab ...
जवाब देंहटाएंअनुपमा जी, मनोज जी और सानू भाई बहुत बहुत शुक्रिया|
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत बढ़िया कटाक्ष...
जवाब देंहटाएंआज की हलचल में इस रचना की हलचल है...
सादर.
वाह ....बहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंacchhi prastuti.
जवाब देंहटाएंमनभावन छंद में वर्तमान परिवेश का सुंदर चित्रण.
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