17 अक्तूबर 2010

आज के रावण


विजया-दशमी की शुभ-कामनाएँ 

अत्याचार अनीति कौ, लङ्काधीस प्रतीक|
मनुआ जाहि जराइ कें, करें बिबस्था नीक||
करें बिबस्था नीक, सीख सब सुन लो भाई|
नए दसानन  -  भ्रिस्टाचार, कुमति, मँहगाई;
छल, बिघटन, बेकारी, छद्म-बिकास, नराधम|
"मिल कें आगें बढ़ें, दाह कौ श्रेय ल़हें हम"|

एक अकेलो है चना! कैसें फोड़े भाड़?
सीधी सी तो बात है, तिल को करौ न ताड़||
तिल को करौ न ताड़, भाड़ में जाय भाड़ भलि|
जिन खुद बनें, बनाएँ न ही हम औरन कों 'बलि'|
खुद की नीअत साफ रखें, आबस्यकता कम|
"चलौ आज या परिवर्तन कौ श्रेय ल़हें हम"|

10 टिप्‍पणियां:

  1. sundar abhivyakti!
    aaj ke ravan ki pahchan batati aur sankalpshakti ki baat karti kundaliyon ke liye aabhar!

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  2. अनुपमा जी, मनोज जी और सानू भाई बहुत बहुत शुक्रिया|

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  3. वाह ...बहुत बढ़िया कटाक्ष...
    आज की हलचल में इस रचना की हलचल है...
    सादर.

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  4. मनभावन छंद में वर्तमान परिवेश का सुंदर चित्रण.

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